अम्बेडकर: यह चुप्पी की साजिश है

यह चुप्पी की साजिश है: डॉ. बी.आर. अम्बेडकर
यह चुप्पी की साजिश है: डॉ. बी.आर. अम्बेडकर

ITS CONSPIRACY OF SILENCE- DR. B.R. AMBEDKAR
यह चुप्पी की साजिश है – डॉ. बी.आर. अम्बेडकर, अगर ब्राह्मण चुप है और कुछ छुपा रहा है तो हमे जोर से बोलना चाहिए।

इस शोध का परिणाम यह हुआ कि अब हमे अपना इतिहास नए सिरे से लिखना होगा। जो भी आज तक लिखा गया है वो सब ब्राह्मणों ने झूठ और अनुमानों पर आधारित लिखा है। अब अगर DNA को आधार पर विश्लेषण किया जाये, और इतिहास फिर से ना लिखा जाये तो दुनिया ब्राह्मणों को BACKWARD HISTORIAN कहेंगे। DNA पीढ़ी दर पीढ़ी बिना किसी बदलाव के स्थानांतरित होता रहता है।आक्रमणकारी लोग हमेशा अल्पसंख्यक होते है और वह की प्रजा बहुसंख्यक होती है।

जब भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की बात आती है तो आक्रमणकारी लोगों के मन में बहुसंख्यकों के प्रति हीन भावना का विकास होता है। इसीलिए ब्राह्मणों के मन में मूलनिवासियों के प्रति हीन भावना का विकास हुआ। युद्ध में हारे हुए लोगों को गुलाम बनाना एक बात है, लेकिन गुलामों को हमेशा के लिए गुलाम बनाये रखना दूसरी बात है। यह समस्या ब्राह्मणों के सामने थी।

ऋग्वेद में ब्राह्मणों को देव और मूलनिवासियों को असुर, राक्षस, शुद्र, दैत्य या दानव कहा गया है यह बात प्रमाणित है और इस बात के बहुत से सबुत भी है। भारत के बहुत से लेखकों ने इस बात को कई बार प्रमाणित किया है।यहाँ तक डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भी अपनी किताबों में इस बात को प्रमाणित किया है।

एक सबुत यह भी है कि देव अब ब्राह्मण कैसे हो गये ? दीर्घकाल तक मूलनिवासियों को गुलाम बनाने के लिए ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था स्थापित की और जाती व्यवस्था स्थापित किया। मूलनिवासियों को शुद्र घोषित किया गया।

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डॉ. बी.आर. अम्बेडकर

क्रमिक असमानता में
ब्राह्मणों,राजपूतों और वैश्यों को अधिकार प्राप्त है

अम्बेडकर: मूलनिवासी शूद्रों को कोई अधिकार नहीं दिया गया।मूलनिवासियों को भी अधिकार होना चाहिए था मगर उनको शुद्र बना कर सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया।

ऐसा क्यों किया गया ? खुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए, ताकि मूलनिवासी हमेशा शुद्र बने रहे और बिना किसी युद्ध के ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों के गुलाम बने रहे।

अम्बेडकर ब्राह्मण,राजपूत और वैश्य अगर एक है तो उन्होंने अपनों को तीन हिस्सों में क्यों बंटा?

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अम्बेडकर ब्राह्मण,राजपूत और वैश्य अगर एक है तो उन्होंने अपनों को तीन हिस्सों में क्यों बंटा?

मूलनिवासियों को हमेशा के लिए गुलाम बनाने के लिए व्यवस्था बनाना जरुरी था। संस्कृत में वर्ण का अर्थ होता है रंग। तो वर्णव्यवस्था का अर्थ है रंगव्यवस्था। संस्कृत के शब्दकोष में आपको आज भी वर्ण का अर्थ रंग ही मिलेगा। ये रंगव्यवस्था/वर्णव्यवस्था क्यों ? क्योकि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों का रंग तो एक ही है। इसीलिए रंगव्यवस्था में ये तीनों वर्ण अधिकार सम्पन है।

चौथे रंग का आदमी उनके रंग का नहीं है। इसीलिए अधिकार वंचित है । DNA की वजह से विश्लेषण करना संभव है। #नस्लीय_भेदभाव की विचारधारा का नाम ही ब्राह्मणवाद है। वर्णव्यवस्था के द्वारा ही गुलाम बनाना और दीर्घ काल तक गुलाम बनाये रखना ब्राह्मणों के लिए संभव हो पाया।

अम्बेडकर 👉ब्राह्मणों ने सभी धर्मशास्त्रों में महिलाओं को शुद्र क्यों घोषित किया।

अम्बेडकर 👉ब्राह्मणों ने सभी धर्मशास्त्रों में महिलाओं को शुद्र क्यों घोषित किया।

ये आज तक का सबसे मुश्किल सवाल था, ब्राह्मणों ने अपनी माँ, बहन, बेटी और पत्नी तक को शुद्र घोषित कर रखा है। DNA में MITOCONDRIVAL DNA के आधार पर ये सच सामने आया कि भारत की सभी महिलाओं का DNA 100% एक है और भारत की महिलाओं का DNA किसी भी विदेशी महिला के DNA से नहीं मिलाता। इस से साबित हो जाता है कि भारत की सभी महिलाये मूलनिवासी है, इसीलिए ब्राह्मणों ने अपनी माँ, बहन, बेटी और पत्नी तक को शुद्र घोषित कर रखा है।

अम्बेडकर: राह्मण,राजपूत और वैश्य जानते है कि उन्होंने केवल प्रजनन के लिए महिलाओं का उपयोग किया है। इसीलिए भी अपनी माँ, बेटी और बहन को शुद्र घोषित कर रखा है। ब्राह्मण हमेशा शुद्धता की बात करता है।ब्राह्मण जानता है कि आदमी का DNA सिर्फ आदमी में स्थानांतरित होता है, इसीलिए ब्रहामण स्त्री को पाप योनी मानता है।क्योकि वो उनकी कभी थी ही नहीं।

DNA और धर्मशास्त्र दोनों के आधार पर ये बात सिद्ध की जा सकती है।इससे ये भी साबित हुआ कि आर्य ब्राह्मण स्थानांतरित नहीं हुए,आर्य आक्रमण करने के उद्देश्य से भारत में आये थे।

क्योकि जो आक्रमण करने आते है वो अपनी महिलाओं को कभी अपने साथ नहीं लाते।ऐसी उस समय की मान्यता थी इसीलिए आज भी आर्यों का स्वाभाव आज तक वैसा ही बना हुआ है।

अम्बेडकर:- बुद्ध ने वर्णव्यवस्था को समाप्त किया। हमारे गुलामी के विरोघ में लड़ाने वाला सबसे पुराना और बड़ा पूर्वज था। इसका मतलब ये है कि वर्णव्यवस्था बुद्ध के काल में भी थी। यह बात प्रामाणिक है कि इस जन आंदोलन में बुद्ध को मूलनिवासियों ने ही सबसे जयादा जन समर्थन दिया। जैसे ही वर्णव्यवस्था ध्वस्त हुई तो चतुसूत्री पर आधारित नई समाज रचना का निर्माण हुआ । उसमें समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय पर आधारित समाज की व्यवस्था की गई।

इस क्रांति के बाद प्रतिक्रांति हुई, जो पुष्यमित्र शुंग(राम) ने बृहदत की हत्या करके की। वाल्मीकि (ब्राह्मण) जिस का असली नाम अग्नि शर्मा था, पुष्य शुंग दरबार का राजकवि था और उसने पुष्यमित्र शुंग और बृहदत को सामने रख कर ही रामायण लिखी। इसका सबुत “वाल्मीकि रामायण” में है। बृहदत की हत्या पाटलिपुत्र में हुई थी,पुष्यमित्र शुंग की राजधानी अयोध्या में थी।

रामायण के अनुसार राम की राजधानी भी अयोध्या में थी। पुरातात्विक प्रमाण है, कोई भी राजा अपनी राजधानी का निर्माण करता है तो उस जगह को युद्ध में जीतता है,फिर अपनी राजधानी बनाता है। मगर अयोध्या युद्ध में जीत गई राजधानी नहीं थी। इसिलए उसका नाम रखा गया अयोध्या अर्थात अ+योद्ध्या; युद्ध में ना जीत गई राजधानी। पुष्यमित्र शुंग ने अश्वमेध यज्ञ किया,रामायण में राम ने भी अश्वमेध यज्ञ किया।

पुष्यमित्र ने जो प्रतिक्रांति की इसके बाद भारत में जाति व्यवस्था को स्थापित किया गया। पहले गुलाम बनाने के लिए वर्णव्यवस्था और प्रतिक्रांति के बाद मूलनिवासी हमेशा गुलाम बने रहे, उसके लिए जाति व्यवस्था का निर्माण किया गया। मूलनिवासियों का प्रतिकार हमेशा के लिए खत्म करने के लिए विदेशी आर्यों ने योजना बना कर सभी मूलनिवासियों को अलग अलग 6743 जातियों में बाँट दिया। जिससे मूलनिवासियों में एक मानसिक स्थिति पैदा हो गई कि हम प्रतिकार करने योग्य नहीं रह गये। गुलामों में ही ऐसी मानसिक स्थिति होती है।

पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ब्राह्मणों के पैर धो रहे हैं


ब्राह्मणों ने जातिव्यवस्था को क्रमिक असमानता पर खड़ा किया गया। असमान लोग एक होने चाहिए थे लेकिन ब्राह्मणों ने असमान लोगों को भी क्रमिक असमानता में विभाजित किया। प्रतिकार अंदर ही अंदर होता है । लेकिन जिसने गुलामी लादी उसका प्रतिकार करने का ख्याल भी मन में नहीं आता क्योकि ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों में जाति पर आधारित लड़ाईयां करवाना शुरू कर दिया।

जिससे मूलनिवासी आपस में ही लड़ने लगे और उन्होंने असली गुलामी लादने वाले का प्रतिकार करना बंद कर दिया। DNA शोध सिद्ध करता है कि जाति/वर्ण व्यवस्था का निर्माणकर्ता ब्राह्मण है उसने सभी को विभाजित किया लेकिन खुद को कभी विभाजित नहीं होने दिया।

अम्बेडकर: जाति प्रथा को बनाये रखने के लिए ब्राह्मणों ने निम्न परम्पराओं और प्रथाओं का विकास किया।

जाति के साथ ब्राह्मणों की सर्वोच्चता जुडी हुई है। इसलिए ब्राह्मणों के सामने हमेशा संकट खड़ा रहा कि इस व्यवस्था को कैसे कायम रखा जाये। जाति प्रथा को बनाये रखने के लिए ब्राह्मणों ने निम्न परम्पराओं और प्रथाओं का विकास किया।

👉#कन्यादान परम्परा – कन्या कोई वस्तु नहीं है जिसका दान किया जाये। लेकिन ब्राह्मणों ने बड़ी चालाकी के साथ धर्म का प्रयोग करते हुए, ऐसी व्यवस्था बनाई कि जब कन्या शादी योग्य हो जाये तो उसकी शादी की जिमेवारी माँ-बाप की होगी। माँ-बाप कन्या की शादी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित “ब्राह्मण सामाजिक व्यवस्था” के अनुसार ही करेंगे ।

अगर लडकी जाति से बाहर अपनी पसंद से शादी करेगी तो जाति व्यवस्था समाप्त हो जायेगी और ब्राह्मणों की सर्वोच्चता समाप्त हो जायेगी । ऐसे तो मूलनिवासियों की गुलामी समाप्त हो जायेगी, ये नहीं होना चाहिए इसीलिए “ब्राह्मण सामाजिक व्यवस्था” स्थापित करके कन्यादान की प्रणाली विकसित की गई।

👉#बाल विवाह प्रथा – लडकी विवाह योग्य होने पर अपनी पसंद से शादी कर सकती है और उस से जातिव्यवस्था समाप्त हो सकती है तो उसके लिए बालविवाह व्यवस्था को स्थापित किया गया। ताकि बचपन में ही लडकी की शादी कर दी जाये। क्योकि माँ-बाप तो अपनी ही जाति में लडकी की शादी करवाएंगे और मूलनिवासी गुलाम के गुलाम ही बने रहेंगे। ज्यादा जानकारी के लिए CAST IN INDIA और ANHILATION OF CASTE किताबे पढ़े, जो डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने लिखी है।

👉#विधवा विवाह प्रथा – विधवा विवाह निषेध कर दिया गया। अगर कोई विधवा किसी विवाह योग्य लडके से शादी कर लेती है तो समाज में एक लड़का कम हो जायेगा,और जिस लडकी के लिए लड़का कम होगा वो लडकी जाति से बाहर जा कर शादी कर सकती है । इससे भी जाति प्रथा को खतरा था तो विधवा विवाह भी निषेध कर दिया गया था। जाति अंतर्गत विवाह जाति बनाये रखने का सूत्र है और जाति व्यवस्था वनाये रखने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल किया जाता है ।

इस व्यवस्था को बनाये रखने के लिए विधवाओं पर मन मने अत्याचार होते थे। ब्राह्मणों ने देखा कि विधवा को टिकाये रखना संभव नहीं है तो विधवाओं के लिए नए क़ानून बनाये गये । विधवा सुन्दर नहीं दिखनी चाहिए इसलिए उनके बाल काट दिए जाते थे। कोई उनकी ओर आकर्षित ना हो जाये इसलिए उनको साफ़ सफाई से रहने का अधिकार नहीं था। ताकि कोई उनके साथ शादी करने को तैयार ना हो जाये। यानी किसी भी स्थिति में जातिव्यवस्था बनी रहनी चाहिए।

👉#सतीप्रथा – ब्राह्मणों ने विधवा औरतों से निपटने और जाति व्यवस्था को बनाये रखने के लिए दूसरा रास्ता सती प्रथा निकला ।

Sati Pratha Abolished By Raja Ram Mohan Roy - प्रथा: मृत देह के साथ बैठाकर  जला देते थे जिंदा, मौत होने तक देते थे पहरा | Patrika News
सती प्रथा

धर्म के नाम पर औरतों में गौरव भाव का निर्माण किया।जैसे कि मरने वाली स्त्री सचे चरित्र, पतिव्रता और पवित्र है इसीलिए सती है। जो स्त्री सची है उसे अपने पति की चिता में जिन्दा जल जाना चाहिए। स्त्रियों में गौरव की भावना का निर्माण करने के लिए बडसावित्री नाम की प्रथा को जन्म दिया गया। ब्राह्मणों ने जितने भी घटिया काम किये उन पर गर्व किया। और महिलाये बिना सच को जाने अपनी जान देती रही।

👉#बडसावित्री संस्कार भी बहुत योजनाबढ तरीके से बनाया गया है। इस में औरत हाथ में धागा लेकर चक्कर कटती है और कहती है यही पति मुझे अगले सात जन्मों तक मिलाना चाहिए, यह शराबी है, मुझे मारता पिटता है, मेरे पर अत्याचार करता है, फिर भी मुझे यही पति मिलाना चाहिए।

यह ब्राह्मणों का एक बहुत गहरा षड्यंत्र है, यह त्यौहार हर साल आता है। हर साल स्त्रियों के मन में यह संस्कार डाला जाता है। यही पति तुम को मिलाने वाला है और कोई नहीं मिलेगा और अगर तुम जिन्दा रहती हो तो जब तक जिन्दा रहोगी तब तक तुम्हारे पुनर्मिलन में बहुत देरी हो जायेगी।

अगर तुम अपने पति के साथ चिता पर मर जोगी तो एक ही तारीख में,एक ही समय में, एक साथ पैदा हो जाओगी, पुनर्जन्म हो जायेगा। फिर दोनों का मिलन भी हो जायेगा। ब्राह्मणों ने यह योजना जाति व्यवस्था को बनाये रखने के लिए बनाई।जैसे कोई चोर यह नहीं कहता कि में चोर हूँ; यही हाल ब्राह्मणों का है। जन्म जन्म का काल्पनिक सिद्धांत बना कर स्त्रियों पर मन चाहे अत्याचार किये गये ताकि जातिव्यवस्था बनी रहे।

👉#क्रमिक_असमानता – जाति बंधन डालने के बाद उसे बनाये रखना संभव नहीं था । गुलाम को गुलाम बनाये रखने के लिए हर किसी के ऊपर किसी को रखना ही इस समस्या का समाधान था।सारे मूलनिवासी आपस में लड़ते रहे, मूलनिवासी कभी ब्राह्मणों के खिलाफ खड़े ना हो जाये।

इसीलिए ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों को ऊँची और नीची जातियों में बाँट दिया। उंच नीच की भावना मानवता की भावना को खत्म कर देती है। इसीलिए ब्राह्मणों ने क्रमिक असमानता के साथ जाति व्यवस्था का निर्माण किया है। और आज भी हर मूलनिवासी जाति और धर्म के नाम पर लड़ता रहता है और ब्राह्मण मज़े से तमाशा देख कर हँसता है।

अस्पृश्यता–जातिव्यवस्था बुद्ध पूर्व काल में नहीं थी इसीलिए उस समय के साहित्य में जाति या वर्ण व्यवस्था का वर्णन नहीं आता। इसीलिए यह भ्रान्ति फैली हुई है जिन बौद्धों ने ब्राह्मण धर्म का अनुसरण किया,और ब्राह्मणों ने जिन बौद्धों को अपना लिया वो आज के समय में ओबीसी में आते है। उन पर आज भी ब्राह्मणों का प्रभाव है जिसके कारण ओबीसी में आने वाले लोग दूसरे मूलनिवासियों से अपने आप को उच्च समझते है। ओबीसी भी पुष्यमित्र शुंग की प्रतिक्रांति के बाद बनाया गया मूलनिवासी लोगों का समूह है।

सिंधु घाटी की सभ्यता पैदा करने वाले भारतीय लोगो से इतनी बड़ी महान सभ्यता कैसे नष्ट हुई,जो 4500-5000 ईसा पूर्व से स्थापित थी?ये इंग्रेजो ने पूछा था, एक अंग्रेज अफसर को इस का शोध करने के लिए भी बोला गया था। बाद में इसके शोध को राघवन और एक संशोधक ने शुरू किया। पत्थर और ईंटों के परिक्षण में पता चला कि ये संस्कृति अपने आप नहीं मिटी थी। बल्कि सिंधु घटी की सभ्यता को मिटाया गया था। दक्षिण राज्य केरल में हडप्पा और मोहनजोदड़ों 429 अवशेष मिले। ब्राम्हण भारत में ईसा पूर्व 1600-1500 शताब्दी पूर्व आया।

ऋग्वेद में इंद्र के संदर्भ में 250 श्लोक आतें हैं। ब्राह्मणों के नायक इन्द्र पर लिखे सभी श्लोकों में यह बार बार आता है कि “हे इंद्र उन असुरों के दुर्ग को गिराओं” “उन असुरों(बहुजनों) की सभ्यता को नष्ट करो”। ये धर्मशास्त्र नहीं बल्कि ब्रहामणों के अपराधों से भरेदस्तावेज हैं।
भाषाशास्त्र के आधार पर ग्रिअरसन ने भी ये सिद्ध किया की अलग-अलग राज्यों में जो भाषा बोली जाती हैं,वो सारी भाषाओँ का स्त्रोतपाली है।

DNA के परिक्षण से प्राप्त हुआ सबूतनिर्विवाद और निर्णायक है। क्योकि वो किसी तर्क या दलील पर खड़ा नहीं किया गया है। इस शोध को विज्ञान के द्वारा कभी भी प्रमाणित किया जा सकता है। विज्ञान कोई जाति या धर्म नहीं है। इस शोध को करने वाले पूरी दुनिया से 265 लोग थे। बामशाद का यह शोध 21 मई 2001 के TIMES OF INDIA में NATURE नामक पेज पर छपा, जो दुनिया का सबसे ज्यादा वैज्ञानिक मान्यता प्राप्त अंक है।

बाबासाहब आंबेडकर की उम्र सिर्फ 22 साल थी जब उन्होंने विश्व का जाति का मूलक्या है, इसकी खोज की थी। और 2001 में जो DNA परिक्षणहुआ था, बाबासाहब का और माइकल बामशाद का मत एक ही निकला था। ब्राम्हण सारी दुनिया के सामने पुरे बेनकाबहो चुके थे।फिर भी ब्राह्मणों ने अपनी असलियत को छुपाने के लिए अपनी ब्रह्माणी सिद्धांत को अपनाया और ऐसा प्रचारित किया कि भारत में दक्षिणी ब्राह्मण दो नस्लों के होते है।

ब्राह्मणों ने DNA के परिक्षण को पूरी तरह ख़ारिज नहीं किया और एक और झूठ मीडिया द्वारा प्रचारित करना शुरू कर दिया कि अब कोई मूलनिवासी नहीं है सभी लोग संमिश्र हो चुके है। उन्होंने कहा मापदंड ढूंढा? ब्राह्मणों ने दलील देकर कहा कि अन्डोमान और निकोबार द्वीप समूह की जो आदिवासी जनजाति है वो अफ्रीकन के वंशज है,वो उधर से आया था।

और यूरेशियन देशों में चला गया है, इस पर भी शोध होना चाहिए। बामशाद के द्वारा किये गये शोध को नकारने के लिए ब्राह्मणों ने सिर्फ विज्ञान शब्द का प्रयोग किया और उसे झूठा प्रचारित किया। ब्राह्मण अगर यह झूठी कहानी सुनाये तो उस से पूछो कि दोनों ब्राह्मण नस्लों में से विदेश से कौन आया है ? विदेशी का DNA बताओ ? DNA के आधार पर ब्राह्मण अपनी बातों को सिद्ध नहीं कर सकता।
ब्राह्मण मुसलमान विरोधी घृणा आंदोलन क्यों चलता है?

क्योकि ब्राह्मणवाद और बुद्धिज्म के टकराव के समय बहुत से बौद्धिष्ट मुसलमान बन गये थे उन्होंने ब्राह्मण धर्म को नहीं अपनाया था। ब्राह्मण जनता है कि आज भारत में जितने भी मुसलमान है वो सब मूलनिवासी है इसीलिए ब्राह्मण मुसलमानों के खिलाफ घृणा का आंदोलन चलता रहता है ताकि ब्राह्मण किसी भी तरह मूलनिवासियों की एक शाखा को पूरी तरह खत्म कर सके।

अंग्रेजों के गुलाम ब्राह्मण था और उनके गुलाम मूलनिवासी थे। आज़ादी की जंग में आज़ादी के लिए आंदोलन करने वाले लोगों के सामने यह सबसे बड़ी समस्या थी। इसीलिए डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने अंग्रेजों को कहा कि ब्राह्मणों को आज़ाद करने से पहले मूलनिवासी बहुजनों को जरुर आज़ाद कर देना चाहिए। अगर ब्राह्मण मूलनिवासियों से पहले आज़ाद हो गया तो ब्राह्मण मूलनिवासियों को कभी आज़ाद नहीं करेगा।

ये आशंका सिर्फ डॉ. भीम राव अम्बेडकर के मन में ही नहीं थी बल्कि मुसलमान नेताओं के मन में भी थी। इसीलिए 14 अगस्त को पाकिस्तान बना। मुसलमानों ने अंग्रेजों को कहा कि गाँधी से एक दिन पहले हमे आज़ादी देना और हमारे बाद गाँधी को देना।अगर तुमने पहले गाँधी को आज़ादी दे दी तो गाँधी बनिया है हमको कुछ नहीं देगा। ब्राह्मणों ने अपनी आज़ादी की लड़ाई मूलनिवासियों को सीडी बनाकर लड़ी और वो अंग्रेजों को भगा कर आज़ाद हो गये।

DNA संशोधन से सामने आया कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य भारत के मूलनिवासी नहीं है। व्यवहारिक रूप से भी देखा जाये तो ब्राह्मणों ने कभी भारत को अपना देश माना भी नहीं है। ब्राह्मण हमेशा राष्ट्रवाद का सिद्धांत बताता आया है लेकिन खुद कितना देशभक्त है ये बात किसी को नहीं बताता। इसका मतलब एक विदेशी गया और दूसरा विदेशी मालिक हो गया, DNA ने सिद्ध कर दिया। दूसरे विदेशी ब्राह्मणों ने ये प्रचार किया कि भारत आज़ाद हो गया।

लेकिन आज भी भारत पर आज भी ब्राह्मणों का राज है। इससे यह साबित होता है कि मूलनिवासियों को भविष्य में आज़ादी हासिल करने का कार्यक्रम चलाना ही पड़ेगा। DNA परिक्षण के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि आज भी देश के 130 करोड में से 32 करोड लोग बाकि 98 करोड़ लोगों पर राज कर रहा है। कल्पना करो कितना मुलभुत और महत्वपूर्ण संशोधन है।

👉किसी जाति को गुलाम बनाना हो तो उसकी भाषा, उसका इतिहास और उसका धर्म बदल दो वह जाति आप की अनुयायी हो जायेगी…और आर्यों ने, मुसलमानों ने यही किया…और बदल डाला पूरा समाज जो परंपरा के रूप में बचा वह आज भी विद्दमान है

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