ब्रिटिश काल में शूद्र जाति का सर्वाधिक पतन हुआ। अंग्रेजी सरकार ने 1871 में अपराधी जाति अधिनियम बनाकर अधिकांश घुमन्तु तथा अर्ध घुमन्तु जाति को जिनमें अधिकांश शूद्र जातियाँ थी, जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। इस अधिनियम में 1911 व 1924 में संशोधन करके इसे अधिक कठोर बनाया गया।
आजादी के बाद भारत में प्रजातंत्र की स्थापना हुई। भारत सरकार ने सभी शूद्र, अस्पृश्य जाति एवं जनजाति की दो सूचियाँ बनाई। पहली में अनुसूचित जातियाँ और दूसरी में अनुसूचित जनजातियाँ। इनके सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक उत्थान के लिए संविधान में अनेक व्यवस्थाएँ की गई।
अनुसूचित जाति की परिभाषा
अनुसूचित जाति की परिभाषा, अनुसूचित जाति की परिभाषा क्या है?
सन् 1935 में साइमन कमीशन ने सर्वप्रथम इनके लिए ‘अनुसूचित जातियाँ’ शब्द का प्रयोग किया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भी इसी नाम को अपनाया।
तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने अस्पृश्य या हरिजन कही जाने वाली 429 जाति की एक सूची बनाई तथा इन्हें अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखा। भारतीय संविधान में यह जातियाँ अनुसूचित जाति के नाम से जानी जाती है।
डॉ. डी.एन. मजूमदार के अनुसार ‘‘अस्पृश्य जातियाँ वे हैं जो बहुत सी निर्योग्यताओं से पीड़ित हैं, जिनमें से अधिकतर निर्योग्यताओं को परम्परा द्वारा निर्धारित करके सामाजिक रूप से उच्च जाति द्वारा लागू किया गया है।
डॉ. जी.एस. घुरिये के अनुसार ‘‘अनुसूचित जाति को मैं उन समूहों के रूप में परिभाषित कर सकता हूँ, जिनका नाम इस समय लागू अनुसूचित जाति के आदेश में है।’’