प्रेस की आज़ादी नियंत्रित करने वाले 37 राष्ट्राध्यक्षों में नरेंद्र मोदी का नाम शामिल: रिपोर्ट
मोदी के बारे में कहा गया है कि वह 26 मई, 2014 को पदभार ग्रहण करने के बाद से एक प्रीडेटर रहे हैं और अपने तरीकों को ‘राष्ट्रीय लोकलुभावनवाद और दुष्प्रचार’ के रूप में सूचीबद्ध करते हैं.
आरएसएफ कहता है, ‘उनके पसंदीदा लक्ष्य ‘सिकुलर’ और ‘प्रेस्टीट्यूट्स’ हैं. पहला एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल हिंदू दक्षिणपंथी और मोदी की भारतीय जनता पार्टी के समर्थक ‘धर्मनिरपेक्ष’ दृष्टिकोणों की आलोचना करने के लिए करते हैं.
यह एक ऐसा शब्द जो भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भी है और जाहिर तौर पर हिंदू धर्म का पालन करने वाले दक्षिणपंथी इसका पालन नहीं करते हैं.’
वहीं, दूसरा शब्द ‘प्रेस और प्रॉस्टीट्यूट का मिश्रण’ है जो स्री जाति से द्वेष के साथ यह संकेत देने की कोशिश करता है कि मोदी विरोधी मीडिया बिक चुका है.
प्रेस की आज़ादी आरएसएफ स्वतंत्र प्रेस पर मोदी के प्रभाव का वर्णन इस प्रकार करता है:
आरएसएफ स्वतंत्र प्रेस पर मोदी के प्रभाव का वर्णन इस प्रकार करता है:
2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस पश्चिमी राज्य को समाचार और सूचना नियंत्रण विधियों के लिए एक प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया और उसका इस्तेमाल उन्होंने 2014 में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने के बाद किया.
उनका प्रमुख हथियार मुख्यधारा के मीडिया को भाषणों और सूचनाओं से भर देना है, जो उनकी राष्ट्रीय-लोकलुभावन विचारधारा को वैधता प्रदान करते हैं. इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने अरबपति व्यवसायियों के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए हैं, जिनके पास विशाल मीडिया साम्राज्य हैं.
यह कपटी रणनीति दो तरह से काम करती है. एक ओर प्रमुख मीडिया आउटलेट्स के मालिकों के साथ अपने साफ तौर पर संबंध बनाने से उनके पत्रकार जानते हैं कि अगर वे सरकार की आलोचना करते हैं तो उन्हें बर्खास्तगी का जोखिम होता है.
दूसरी ओर, अक्सर दुष्प्रचार फैलाने वाले उनके अत्यंत विभाजनकारी और अपमानजनक भाषणों का प्रमुख कवरेज मीडिया को रिकॉर्ड दर्शकों के स्तर को प्राप्त करने में सक्षम बनाता है.
मोदी को अब केवल उन मीडिया आउटलेट्स और पत्रकारों को बेअसर करना है जो उनके विभाजनकारी तरीकों पर सवाल उठाते हैं.
प्रेस की आज़ादी मोदी को अब केवल उन मीडिया आउटलेट्स और पत्रकारों को बेअसर करना है जो उनके विभाजनकारी तरीकों पर सवाल उठाते हैं.
मोदी को अब केवल उन मीडिया आउटलेट्स और पत्रकारों को बेअसर करना है जो उनके विभाजनकारी तरीकों पर सवाल उठाते हैं.
इसके लिए उसके पास न्यायिक शस्त्रागार है जिसमें ऐसे प्रावधान हैं जो प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करते हैं. उदाहरण के लिए, पत्रकार राजद्रोह के बेहद अस्पष्ट आरोप के तहत आजीवन कारावास के खतरे को उठाते हैं.
इस शस्त्रागार को बंद करने के लिए मोदी योद्धा के रूप में जाने जाने वाले ऑनलाइन ट्रोल्स की एक सेना, जिन्हें योद्धा कहा जाता है, पर भरोसा कर सकते हैं, जो उन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर घृणास्पद अभियान चलाते हैं, जिन्हें वे पसंद नहीं करते हैं. ऐसे अभियान जिनमें लगभग नियमित रूप से पत्रकारों को मारने के आह्वान शामिल होते हैं.
नोट में यह भी कहा गया है कि 2017 में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या, हिंदुत्व (वह विचारधारा, जिसने हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन को जन्म दिया, जो मोदी की पूजा करता है) का एक महत्वपूर्ण शिकार थीं.
इसमें यह भी नोट किया गया है कि मोदी की आलोचक राणा अय्यूब और बरखा दत्त जैसी महिला पत्रकारों को डॉक्सिंग (दुर्भावनापूर्ण इंटरनेट सर्च) और गैंगरेप के आह्वान जैसे भीषण हमलों का सामना करना पड़ता है.
एक नियम के रूप में कोई भी पत्रकार या मीडिया आउटलेट जो प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय-लोकलुभावन विचारधारा पर सवाल उठाते हैं, उन्हें जल्दी से ‘सिकुलर’ (बीमार और धर्मनिरपेक्ष शब्द का एक मिश्रण) के रूप में ब्रांडेड किया जाता है.
इसके साथ ही ऐसे उन्हें भक्तों द्वारा निशाना बनाया जाता है, जो उन पर मुकदमे दायर करते हैं, मुख्यधारा के मीडिया में उन्हें बदनाम करते हैं और उनके खिलाफ ऑनलाइन हमलों का समन्वय करते हैं