“जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झाँसी की झलकारी थी ।
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी।।”
झलकारी बाई की वीरता का श्रेय झलकारी बाई को ना देके, रानी लक्ष्मी बाई को दिया जाता हैराष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता की पंक्तियां झलकारी बाई की वीरता के लिए लिखीं थीं। जन्म : 22 नवंबर 1830 — मृत्यु : 4 अप्रैल 1857
झलकारीबाई का जन्म सदोवा सिंह और जमुनादेवी के यहाँ 22 नवंबर 1830 को झाँसी के निकट एक कोली परिवार में भोजला गाँव में हुआ था। यह दावा किया जाता है कि अपनी युवावस्था में एक बाघ द्वारा हमला किए जाने और कुल्हाड़ी से मारने पर वह अपनी जमीन पर खड़ी रही।
उसने कथित तौर पर एक बार जंगल में एक तेंदुए को एक छड़ी से मार डाला जिसका इस्तेमाल वह मवेशियों को चराने के लिए करती थी।
जब वह बहुत छोटी थी तब उसकी माँ की मृत्यु के बाद उसके पिता ने उसका पालन-पोषण किया। उस युग की सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप, उनके पास औपचारिक शिक्षा का अभाव था, लेकिन उन्हें घुड़सवारी और हथियारों के उपयोग में प्रशिक्षित किया गया था। झलकारी बाई लक्ष्मीबाई के समान थीं और इस वजह से उन्हें सेना की महिला विंग में शामिल किया गया था।
देश के इतिहास में महिला स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सबसे पहला नाम अक्सर रानी लक्ष्मीबाई का सामने आता है, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई की कहानी से जुड़ा एक ऐसा नाम भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। जिसने झांसी की रानी की जान बचाने के लिए खुद रानी लक्ष्मीबाई का वेष धारण कर अंग्रेजों को चकमा दे दिया,
और उस स्वतंत्रता सेनानी का नाम था झलकारी बाई। 1857 के युद्ध के दौरान जब अंग्रेजी शासन ने झांसी के किले पर कब्जा करना चाहा, उस दौरान भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध में ब्रिटिशों ने झांसी को पूरे तरफ से घेर लिया था।
उस दौरान झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के पास उनका बेटा मनु था जो कि काफी छोटा था। सैनिकों के हमले से बचाने के लिए झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई से कहा आप अपने अपने बच्चे को लेकर भाग जाइए।
मैं आपकी शक्ल में अंग्रेज़ों को रोककर रखूँगी। अंग्रेज़ों को लगेगा कि आप उनसे लड़ रही है। लेकिन तब तक लक्ष्मीबाई आप उनकी पहुंच से दूर जा चुकी होंगी। झलकारी बाई के बहुत जिद करने पर रानी लक्ष्मीबाई मान गई।
झलकारी बाई ने इसके बाद बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह श्रृंगार किया।
झलकारी बाई ने इसके बाद बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह श्रृंगार किया। और उनकी तरफ कपड़े पहने और जिस तरह रानी लक्ष्मीबाई अपने बेटे मनु को अपने पीठ पर बांधकर युद्ध के मैदान पर उतरती थी उसी तरह एक गुड्डा अपनी पीठ बांधा औऱ घोड़े पर बैठ अंग्रेजो की छावनी की ओर चल दी।
थोड़ी ही दूर जाने पर झलकारी बाई को अंग्रेजो की एक टुकड़ी मिली औऱ उन्होंने झलकारी बाई को रानी लक्ष्मीबाई समझकर घेर लिया। इसके बाद वे झलकारी बाई को अपने जनरल के पास लेकर गए। पूरे गांव शहर में हल्ला हो गया कि रानी लक्ष्मीबाई पकड़ी गई। लेकिन जब उन्हें पता चला कि ये रानी लक्ष्मीबाई नहीं है, तो अंग्रेजो ने दांतों तले उंगलियां दबा बैठे।
झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई के क़िले के सामने वाले भोजला गाँव रहती थी। गाँव के लोग पहाड़ों में, जंगलों में लकड़ियां इकट्ठा करते थे, झलकारी बाई का परिवार पेशे से एक बुनकर परिवार था. वह बेहद ग़रीब परिवार से थी। यहां झलकारी बाई का घराना आज भी है। आज पूरा गांव झलकारी बाई को उनके बलिदान और बहादुरी के लिए याद करता है।
आज देश को आजादी की लड़ाई में झलकारी बाई जैसी न जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में पता नहीं वो बस इतिहास के पन्नों में खो कर रह गए है। अंग्रेजों के गुलामी के दौर ऐसी बहुत सी झलकारी बाई ने देश और अपने कर्तव्य को सर्वोपरि रखते हुए बलिदान दे दिया। इतिहास के पन्नों में ये उतने चर्चित नहीं जितने होने चाहिए।
झलकारी बाई ने न केवल रानी लक्ष्मीबाई का वेष धारण किया बल्कि उनकी तरह ही युद्ध के मैदान अंग्रेजों के दांत भी खट्टे किए। जिसको इतिहासकार भारत के इतिहास के पन्नो से तो मिटा सकते है पर लोगो के दिलो कैसे मिटायेंगे, जय हिन्द