आदरणीय मित्र-गण,
यदि हम एक दूसरे को यही उलाहना देने लगे तो फ़िर कौन किसे समझाएगा……
इस तरह एक ईमानदार कोशिश भी नाकामयाब हो जाएगी……
ऐसा तब होता है जब हम अपने साथी को ख़ुद से अलग समझ कर….. इंसानियत को मज़हब से जोड़ देते हैं।
यदि आप प्रतिक्रिया देने वाले को अपना ही भाई समझें
तब निश्चित ही हम-सबकी शिकायत दूर होजाएगी …..
हमें याद रखना चाहिए कि Burning issue पर अच्छे लोग हमेशा प्रतिक्रिया देते हैं;चाहे वे किसी मज़हब के हों;उनकी प्रतिक्रिया को एक मज़हब से जोड देना उनकी कोशिशों के साथ इंसाफ़ नहीं है….
अधिकतर लोग जो घटित होता है उस पर ही प्रतिक्रिया देते हैं…..उस प्रतिक्रिया से आपको….. दूसरे विचार को समझने का मौक़ा मिलता है….
जिसके फलस्वरूप आपके विचार परिपक्व होते हैं और देश को शांति की ओर ले जाते हैं…..
अक्सर दोनों धर्मों के लोग यही उलाहना देते हैं कि पश्चिम बंगाल में कोई हत्या होती है उदारवादी चुप रहते हैं…..और दूसरा तबका उन्हीं उदारवादियों पर यही आरोप लगाता है कि Udaipur जैसी घटनाओं पर उदारवादी उन्हें ही समझाते हैं……
आप दूसरे से किस तरह अपेक्षा कर सकते हैं की बात पूर्व की हो रही हो और वो प्रक्रिया में पश्चिम की बात करना शुरू कर दे;क्या इसे इंसाफ़ कहा जा सकता है।
सच्चाई तो यह है कि उदारवादी सभी धर्मों के साथ उस वक़्त इंसानियत के धर्म का पालन कर रहा होता है और वह क़ुरान-वेद-बाइबल के अनुसार सच को झूठ से जुदा कर रहा होता है……सभी एक समय में ना तो ठीक हो सकते हैं और न ही ग़लत……
हमें अपने नज़रिया को दुरुस्त करने की ज़रूरत है…..
हमें अपने हिस्से का कर्म करना चाहिए और दूसरे से इसके एवज़ में ईमानदारी बरतने की उम्मीद करनी चाहिए……
और अंत में इतना ही…..
फ़ासले ख़ुद ब ख़ुद हो जाएंगे कम….क़दम तो मुनासिब बढ़ाइएगा!!