इसी दिन से अंग्रेजी हुकूमत के दमनकारी नीतियों के खिलाफ हूल क्रांति का आगाज हुआ ।

हूल संथाली शब्द है, जिसका अर्थ होता है विद्रोह। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सर्वप्रथम माने जाने वाले विद्रोह 1857 से 2 साल पहले 30 जून 1855 को शुरू हुए इस विद्रोह के प्रमुख नायक रहे सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झरनों ।
जब 10000 आदिवासियों के समक्ष सिदो को राजा कान्हू को मंत्री, चांद को प्रशासक और भैरव को सेनापति बनाया गया ।
अंग्रेजी राज के खात्मा और अपना राज कायम हुआ का शंखनाद किया गया । इसके बाद अंग्रेजी सरकार को मालगुजारी देना बंद कर दिया गया ।
फिर 7 जुलाई 1855 को संथाली वीरों ने दमनकारी दारोगा और 9 सिपाहियों को घेरकर मार डाला ।
इसी दिन से अंग्रेजी हुकूमत के दमनकारी नीतियों के खिलाफ हूल क्रांति का आगाज हुआ ।

भेदभाव से भरी ऐतिहासिक गाथाओं में एक गाथा यह भी है ।
सिदो कान्हू इतिहासकारों की कलमों से ऐसे गायब रहे जैसे गधे के सिर पर सींग ।
पूरे 131 साल बाद उनकी कोई स्केच बनाई जा सकी और यह हुआ स्केच आर्टिस्ट सी आर हेम्ब्रम के द्वारा ।

कहा जाता है अंग्रेजों ने अपने दमन को इस क्रूरता से अंजाम दिया कि खुद अंग्रेज सिपाही भी मर्माहत दिखे ।
अंग्रेजों ने संथाली क्षेत्रों में सेना उतार दिया और सबके सामने सिदो कान्हू को फांसी दे दिया,चांद भैरव,फूलो झरनों को मार दिया गया ।
अंग्रेज इतिहासकार ने लिखा लगभग 20000 से ऊपर आदिवासियों के साथ दमनकारी व्यवहार किया गया ,उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया ।

संथाली आदिवासियों द्वारा शुरू किया गया यह विद्रोह जब जनवरी 1855 को जब शांत हुआ तब इस क्षेत्र का नाम संथाल परगना रख दिया गया ।

आज पूरा देश इन नायकों को याद कर रहा है,अपने शहीदों की विस्मृतियों को याद कर रहा है ।
हूल दिवस पर अपने नायकों को मेरा भी सादर नमन, जोहार, जय भीम, जय भारत🙏💕🌹

Rajiv Ranjan Kushwaha ✍✍✍

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