बस्तर के आदिवासियों के बीच दो दशक रहकर उनकी लड़ाई और हक़ के लिए अपना खून पसीना बहाने वाले हिमांशु कुमार पर सुप्रीम कोर्ट ने 5 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया है.यह राशि उन्हें 4 हफ्तों में देना होगा,अगर जुर्माना नहीँ दे पाए तो उन्हें जेल जाना होगा.छत्तीसगढ़ सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि धारा 211 के तहत उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करें.हिमांशु कुमार एक असाधारण योद्धा हैं.वे युवा रहते हुए ही आदिवासियों की भलाई के लिए बस्तर आये और परिवार के साथ बस्तर के दंतेवाड़ा में ही रहना शुरू किए.वनवासी चेतना आश्रम बनाकर आदिवासियों के बीच काम करने लगे.छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार जब माओवादियों के नाम पर भोले -भाले आदिवासियों को मारने लगे तो उन्होंने विद्रोह किया.उनके आश्रम को रमन सिंह सरकार ने उजाड़ दिया.इसी दौरान कल्लूरी नामक एक दुर्दांत पुलिस अधिकारी ने बस्तर में खूब मारकाट मचाया.और सैकड़ो आदिवासियों को नक्सली कहकर मरवा दिया.2009 में सुकमा ज़िले के गोमपाड़ में 16 आदिवासियों के फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने और एक मासूम बच्चे का हाथ काटने के मामले में हिमांशु कुमार ने सुरक्षा बलों पर आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.13 साल बाद न्याय तो नहीं मिला लेकिन हिमांशु कुमार को आदिवासियों के लिए न्याय मांगने पर सजा जरूर मिल गई है.पिछले दिनों ब्रेन हेमरेज झेलने वाले हिमांशु कुमार चेहरे पर मुस्कान रख तानाशाही से लड़ते हैं.मैं व्यक्तिगत तौर पर उन्हें 2007 से जानता हूँ.जब वे एक वेबसाइट में बस्तर के अलग -अलग हिस्सों में सुरक्षा बलों के जुल्म की कहानी लिखते थे. बाद में सुप्रीम कोर्ट में वे कई मामले लेकर गए और उन्हें तब न्याय भी मिला.हिमांशु कुमार अभी कहते हैं उनके जेब में 5 लाख तो क्या 5 हजार भी नहीं है.हर एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता की जेब की यही कहानी है.उनके पास क्या होगा मैं बता सकता हूँ. उनके झोले में बस्तर के आदिवासियों की चिट्ठी होगी.देश के किसी हिस्से में इस तानाशाही सरकार के खिलाफ लड़ने,एक होने का पम्पलेट होगा.कल संजीव भट्ट को गुजरात दंगा मामले में जेल से ही गिरफ्तार किया गया है और आज 13 साल बाद आदिवासियों के लिए न्याय मांगने पर हिमांशु कुमार को जेल भेजने की पूरी तैयारी है.हम हमारे लिए इस तानाशाही दौर में लड़ने और लड़ने की हिम्मत देने वाले साथियों को खोते जा रहे हैं.उन्हें जेल में ठूंसा जा रहा है.प्रताड़ना दी जा रही है.आप अगर इस तानाशाही सरकार और बिक चुके न्यायपालिका के खिलाफ हिमांशु कुमार के साथ खड़े नहीं होते हैं तो समझिए आप मुर्दा हैं.लाल सलाम हिमांशु कुमार.हम सब हिमांशु कुमार हैं.
(तस्वीर,बीबीसी, आलोक पुतुल)