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मुंबई: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर राष्ट्रगान का ‘सम्मान नहीं’ करने का आरोप लगा है और कोर्ट ने इस मामले में जांच के निर्देश भी दे दिए हैं। मुंबई पुलिस को मुंबई की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने बुधवार को निर्देश दिया कि वह वर्ष 2021 में मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रगान के प्रति कथित तौर पर असम्मान प्रदर्शित करने को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ की गई शिकायत पर जांच करे। बॉम्बे हाई कोर्ट की ओर से इस शिकायत पर बनर्जी को कोई राहत देने से इनकार किए जाने के घंटों बाद यह निर्देश आया।
बीजेपुी के कार्यकर्ता ने की थी कोर्ट में शिकायत
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (सेवरी अदालत) पीआई मोकाशी ने दक्षिण मुंबई में कफ परेड थाने को मामले की जांच करने और 28 अप्रैल तक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। बीजेपी की मुंबई इकाई के पदाधिकारी विवेकानंद गुप्ता ने मजिस्ट्रेट की अदालत में शिकायत की और आरोप लगाया कि दिसंबर 2021 में यहां आयोजित कार्यक्रम में जब राष्ट्रगान बज रहा था तब बनर्जी खड़ी नहीं हुईं। गुप्ता ने बनर्जी पर राष्ट्रगान का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ ‘राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम’ के तहत FIR दर्ज करने की मांग की।
कोर्ट ने खारिज कर दी ममता बनर्जी की अर्जी
इसके पहले दिन में बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस अमित बोरकर ने बनर्जी की उस अर्जी को खारिज कर दिया जिसमें सेशन कोर्ट के जनवरी 2023 के आदेश को चुनौती दी गई थी। सेशल कोर्ट ने मामले को फिर से मजिस्ट्रेट की अदालत में भेजने का आदेश दिया था। बनर्जी ने अपनी अर्जी में कहा था कि सेशन कोर्ट (सांसद-विधायक के खिलाफ मामले के लिए विशेष अदालत) को समन को रद्द करने और मामले को मजिस्ट्रेट के पास भेजने के बजाय शिकायत को रद्द करना चाहिए था।
जानें, क्या कहा था ममता बनर्जी के वकील ने
सेशन कोर्ट ने कहा था कि मजिस्ट्रेट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 और 202 का पालन नहीं किया। इन धाराओं के तहत कोई मजिस्ट्रेट समन जारी किए जाने को स्थगित कर सकता है और खुद जांच कर सकता है या संबंधित पुलिस थाने को ऐसा करने का निर्देश दे सकता है। बनर्जी के वकील मजीद मेमन ने कहा कि इन धाराओं के तहत जांच कराए जाने से सीएम को अनावश्यक उत्पीड़न और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा। हालांकि, जस्टिस बोरकर ने कहा कि IPC की धारा 200 और 202 के तहत जांच कराने का उद्देश्य यह तय करना है कि मामले में आगे बढ़ने के लिए पर्याप्त आधार है या नहीं।
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