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एक दौर में दूरदर्शन ने हर घर पर राज किया है. दूरदर्शन पर आने वाला हर कंटेंट ऐसा रहा जिसे आप बेझिझक पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखिए. न इस बात का डर होगा कि आने वाला अगला संवाद किन शब्दों के साथ आएगा. न इस बात की फिक्र होती थी कि कोई ऐसा सीन न आ जाए कि घर वालों से ही नजरें चुरानी पड़ जाएं. साफ सुथरे डायलॉग, तरोताजा कर देने वाला मनोरंजन और बांध कर रखने वाली कहानियां, दूरदर्शन पर आने वाले फैमिली शो की पहचान हुआ करती थीं. इन शोज में देश की मिट्टी की महक थी तो देसी फ्लेवर का तड़का भी था. एक्शन, इमोशन के साथ रोमांस और कॉमेडी के रंग भी खूब सजते थे.
दूरदर्शन के टॉप 5 फैमिली ड्रामा
1. हम लोग (1984): 1984 में दूरदर्शन पर आने वाले इस शो को अगर इंडियन टेलिविजन हिस्ट्री का पहले फैमिली ड्रामा भी कहें तो कुछ गलत नहीं होगा. ये शो एक मिडिल क्लास फैमिली की एक कहानी है, जो अपनी रोज की उलझनों में रहते हुए कई उतार चढ़ाव से गुजरता है. इस शो की कहानी मनोहर श्याम जोशी ने लिखी थी और डायरेक्शन पी. कुमार वासुदेव ने किया था.
2. बुनियाद (1986): हम लोग के बाद बुनियाद ऐसा दूसरा फैमिली ड्रामा था जो दूरदर्शन के दर्शकों की पहली पसंद बना. ये शो 1986 में दूरदर्शन पर दिखाया जाता था. शो में पार्टिशन के दौर की कहानी भी थी जो 1947 के बुरे दौर से गुजर रही थी. इस शो ने हकीकत का आईना भी दिखाया, जिसकी वजह से इसे अवॉर्ड्स भी मिले. इसकी कहानी मनोहर श्याम जोशी ने लिखी थी. इसका निर्देशन रमेश सिप्पी और ज्योती स्वरूप ने किया.
3. रजनी (1985): रजनी एक हाउसवाइफ की कहानी पर बेस्ड सीरियल था जो दूरदर्शन पर 1985 में दिखाया गया. कहानी तो एक घरेलू महिला की थी, लेकिन उसके जरिए कई सोशल मैसेजेस भी दिए गए. करप्शन, सोशल इनजस्टिस जैसे कई मुद्दों पर भी इस सीरियल के जरिए फोकस किया गया. इसको डायरेक्ट बासु चटर्जी ने किया था जबकि रजनी का किरदार प्रिया तेंदुलकर ने निभाया.
4. देख भाई देख (1993): पूरे परिवार के साथ बैठ कर लोट पोट होते हुए हंसना है तो देख भाई देख एक शानदार सीरियल था, जिसमें एक परिवार की तीन पीढ़ियों की कहानी बड़े ही मजेदार और रोचक अंदाज में पेश की जाती थी. देख भाई देख शो का ह्यूमर ऐसा शानदार था जो कि हर उम्र के दर्शकों को हंसने पर मजबूर कर देता था.
5. स्वाभिमान (1995): ये सीरियल ऐसी दो बहनों की कहानी था. शो की खासियत था इसकी फीमेल बेस्ड स्टोरी होना. जो स्ट्रांग फीमेल कैरेक्टर और उनके संघर्षों की कहानी कहने में बखूबी कामयाब रहा.
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