पंडित प्रदीप मिश्रा के दावे की पड़ताल:गंडकी नदी किनारे इतने रुद्राक्ष के पेड़ हैं ही नहीं, फिर कहां से लाए 48 लाख रुद्राक्ष

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नेपाल\मध्यप्रदेश30 मिनट पहले

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चमत्कारी रुद्राक्ष लेने के लिए सीहोर के कुबरेश्वर धाम में एक बार फिर भीड़ उमड़ने लगी है। 18 मई से यहां रुद्राक्ष वितरण शुरू हो गया है। तीन महीने पहले फरवरी में यहां रुद्राक्ष पाने के लिए लाखों लोग जुटे थे। कुछ लोगों को जान भी गंवानी पड़ी थी। अब फिर यहां लोग पहुंच रहे हैं। ये श्रद्धालु जिसे चमत्कारी रुद्राक्ष कहते हैं, उसकी हमने पूरी पड़ताल की। फरवरी में हमने पंडित प्रदीप मिश्रा से ही सवाल किया था कि आपके यहां के रुद्राक्ष में ऐसा क्या खास है? क्या इसे आप अभिमंत्रित करते हो? उनका जवाब था- नहीं। फिर, ये खास क्यों हुआ? इस पर वे बोले- यह नेपाल की गंडकी नदी के तट का रुद्राक्ष है, इस नदी का पानी बहुत तेजस्वी है।

कथित ‘चमत्कारी रुद्राक्ष’ के ठिकाने की पड़ताल के बारे में हम सिलसिलेवार बताते हैं। पहले ले चलते हैं गंडकी नदी के तट पर। इस नदी की कुल लंबाई 1310 किमी है। 1000 किमी का हिस्सा नेपाल में है, जबकि 310 किमी का हिस्सा भारत में। गंडकी नदी नेपाल के मस्तांग जिले में धौलागिरि पर्वत के मुक्तिधाम से निकलकर भारत के पटना-हाजीपुर में गंगा से मिलती है।

भास्कर टीम ने रुद्राक्ष की सच्चाई पता लगाने के लिए त्रिवेणी से नारायणगढ़, देवघाट, रिदी, बेनी, जोमसोम, गोरखा, पोखरा, कुसमा तक 600 किलोमीटर की यात्रा की

भारत-नेपाल बॉर्डर से सटा गांव है त्रिवेणी। यहां से गंडकी नदी गुजरती है। हमें यहां रघुनाथ उपाध्याय मिले, जो बाहर से आने वाले दर्शनार्थियों को नेपाल का दर्शन कराते हैं। हमने इनसे पूछा कि रुद्राक्ष के पेड़ कहां मिलेंगे? उन्होंने बताया- रुद्राक्ष तो पहाड़ों के ऊंचाई वाले इलाके में मिलता है। यहां गंडकी के किनारे रुद्राक्ष की पैदावार नहीं होती।

फिर हम इस गांव से करीब 200 किमी दूर नेपाल की तरफ बढ़े। पोखरा शहर पहुंचे, यहां आकर खेती-बाड़ी का काम करने वाले रंजन मान श्रेष्ठ से मिले। हमने वही सवाल दोहराया कि गंडकी नदी किनारे रुद्राक्ष कहां मिलते हैं? रंजन ने बताया कि यहां न तो इसके पेड़ मिलते हैं, न ही इसकी खेती होती है। हम खुद पोखरा या कांठमांडू के मार्केट से रुद्राक्ष लेकर आते हैं। काठमांडू में नेपाल की सबसे बड़ी रुद्राक्ष मंडी है।

गंडकी के बाद हम पहुंचे उन सप्लायरों के पास, जो पंडित प्रदीप मिश्रा को रुद्राक्ष भेजते हैं

पड़ताल के दौरान हमने 10 गांवों में 30 लोगों से बात की, लेकिन सभी ने कहा- गंडकी के तट पर रुद्राक्ष के पेड़ नहीं होते। फिर हम नेपाल के कुसमा से कांठमांडू की तरफ बढ़े, जहां रुद्राक्ष की सबसे बड़ी मंडी लगती है। भास्कर टीम ने यहां पंडित प्रदीप मिश्रा को रुद्राक्ष सप्लाई करने वाले व्यापारियों को खोज निकाला। इन व्यापारियों से सवाल किया कि क्या गंडकी नदी के किनारे वाला रुद्राक्ष प्रदीप मिश्रा को सप्लाई किया है? तब थोक व्यापारी अशोक मिश्रा, बालकुमार ठाकुर ने बताया, ‘प्रदीप मिश्रा को नवंबर-दिसंबर 2022 में एजेंट के माध्यम से रुद्राक्ष सप्लाई किया था, लेकिन वो गंडकी नदी के किनारे का नहीं था, क्योंकि वहां रुद्राक्ष होता ही नहीं है। इस बार ऑर्डर बड़ा था तो हम 20 व्यापारियों ने मिलकर पंडित मिश्रा को सप्लाई किया। 15 बोरी रुद्राक्ष तो अकेले अशोक मिश्रा ने सप्लाई किए थे।’

थोक व्यापारी बोले- 90 प्रतिशत रुद्राक्ष तिब्बत से सटे नेपाली क्षेत्र का

काठमांडू में भी रुद्राक्ष की खेती होने लगी है। यहां की मंडी में हमने रुद्राक्ष के थोक व्यापारी बालकुमार ठाकुर, गोपाल, सुमंत अधिकारी, जितेंद्र प्रसाद, शिवरतन, सर्वेश जायसवाल, रंजीत जायसवाल से बात की।

इन व्यापारियों से गंडकी किनारे का रुद्राक्ष मांगा, तो वे हैरानी से देखने लगे। बोले- गंडकी नदी पोखरा साइड में है और रुद्राक्ष दार्जिलिंग-सिक्किम से सटे नेपाली इलाके में होते हैं। दोनों के बीच की दूरी 700 किमी से अधिक है। हमारे नेपाल में 90 प्रतिशत रुद्राक्ष भोजपुर, धनकुटा, संखुआसभा, सुनसुरी, तेरहथूम, धरान और ढिंगरा में मिलता है। बाकी 10 प्रतिशत में काठमांडू और दूसरे क्षेत्र शामिल हैं। आप जहां का रुद्राक्ष मांग रहे हैं, वहां इसकी पैदावार ही नहीं होती।

नेपाल में एक रुद्राक्ष 41 पैसे का, भारत आकर एक रुपए का हो जाता है

सबसे ज्यादा पैदावार पांच मुखी रुद्राक्ष की होती है। पंडित प्रदीप मिश्रा भी यही रुद्राक्ष बांटते हैं। एक किलो पांच मुखी रुद्राक्ष की कीमत 100 नेपाली रुपए है। यह 62 भारतीय रुपए के बराबर है। एक किलो में करीब 150 रुद्राक्ष चढ़ते हैं। इस हिसाब से एक रुद्राक्ष लगभग 41 पैसे का पड़ता है। 48 लाख रुद्राक्ष की कीमत लगभग 31 लाख नेपाली रुपए थी। नेपाल और भारत का टैक्स और परिवहन आदि का कुल खर्च 30 लाख भारतीय रुपए में होता है। टैक्स और ट्रांसपोर्ट मिलाकर एक रुद्राक्ष की कीमत लगभग एक रुपए से भी कम पड़ी।

पांच मुखी सबसे सस्ता, एक मुखी सबसे महंगा

काठमांडू के थोक व्यापारी सुमित अधिकारी के मुताबिक रुद्राक्ष के एक ही पेड़ से एक मुखी से लेकर 21 मुखी तक रुद्राक्ष फलता है। अधिकतर फल पांच मुखी ही निकलते हैं। इसका उत्पादन 80 प्रतिशत होता है। इस कारण सबसे सस्ता पांच मुखी रुद्राक्ष पड़ता है। यह थोक में भारत के एक रुपए में पड़ता है। दो से 14 मुखी रुद्राक्ष नेपाल में आसानी से मिल जाते हैं। इससे ऊपर के रुद्राक्ष बहुत कम मिलते हैं। सबसे महंगा रुद्राक्ष एक मुखी होता है। यह बहुत रेयर है। राजतंत्र के समय नेपाल में मिलने वाले एक मुखी रुद्राक्ष को राजकीय कोष में जमा कराना पड़ता था।

तीन रुद्राक्ष एक साथ जुड़े हों तो मुंह मांगी कीमत

दो रुद्राक्ष आपस में जुड़े हों तो उन्हें गौरी-गणेश माना जाता है। वहीं, तीन रुद्राक्ष जुड़े हों तो उन्हें ब्रह्मा, विष्णु व महेश का स्वरूप माना जाता है। इसकी कीमत भी मुंहमांगी मिल जाती है। रुद्राक्ष में औषधीय गुण भी होते हैं। मान्यता है कि इसकी माला पहनने से ब्लड प्रेशर नियंत्रण में रहता है। इसके तेल से एग्जिमा, दाद और मुहांसों से राहत मिलती है। ऐसा भी माना जाता है कि रुद्राक्ष धारण करने से दिल की बीमारी और घबराहट आदि से मुक्ति मिलती है।

नेपाली रुद्राक्ष आकार में बड़ा, हर साल 20 करोड़ से अधिक का निर्यात भारत में

नेपाल का रुद्राक्ष आकार में बड़ा होता है। इसी कारण इसकी मांग सबसे अधिक है। 80 प्रतिशत रुद्राक्ष भारत के हरिद्वार और बनारस में सप्लाई होता है। फिर इन दो शहरों से ही पूरे भारत में रुद्राक्ष भेजा जाता है। नेपाल का 10 प्रतिशत रुद्राक्ष स्थानीय बाजारों और 10 प्रतिशत चीन में खपता है। नेपाल और भारत में रुद्राक्ष का महत्व जहां धार्मिक है, वहीं चीन में इसका उपयोग व्यवसायिक है। वहां रुद्राक्ष का फैशन के तौर पर उपयोग होता है। नेपाल के व्यापारियों को रुद्राक्ष की एवज में नगर पालिका को टैक्स देना पड़ता है। निर्यात करने पर 2 प्रतिशत टैक्स सरकार अलग से लेती है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में रुद्राक्ष की थोक मंडी है। मंडी में मुगदर (51 रुद्राक्ष की माला) बिकता है।

पिछले कुछ वर्षों से चीन में रुद्राक्ष की डिमांड बढ़ी है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में चीन को 4.44 लाख किलोग्राम रुद्राक्ष निर्यात हुआ था। कोविड की वजह से बीच के सालों में निर्यात घटा। वर्ष 2021-22 में 2.6 करोड़ नेपाली रुपए का रुद्राक्ष निर्यात हुआ, जबकि भारत में 20 करोड़ रुपए का रुद्राक्ष निर्यात हुआ था। काठमांडू के थोक व्यापारी सुमित अधिकारी के मुताबिक, नेपाल में रुद्राक्ष नवंबर-दिसंबर में तैयार होता है। उस समय रोज भारत के बनारस और हरिद्वार में 20-25 ट्रक रुद्राक्ष की सप्लाई होती है। एक ट्रक में 20 से 25 टन रुद्राक्ष आता है। भारत को औसतन दो हजार टन रुद्राक्ष की सप्लाई होती है। इसमें अधिकतर पांच मुखी रुद्राक्ष ही होते हैं। भारत में इसकी थोक में सप्लाई 80 रुपए प्रति किलो भारतीय मुद्रा में होती है।

रुद्राक्ष मजदूरों को 1000 रुपए मजदूरी

जंगल से रुद्राक्ष सरकारी समितियों के माध्यम से एकत्र कर बेचा जाता है। खेती करने वाले किसान इसे सीधे मंडी में बेच सकते हैं। रुद्राक्ष के फलों की तुड़ाई और एकत्र करने की मजदूरी 1000 नेपाली रुपए है। 10 घंटे की मजदूरी कराने पर नाश्ता और खाना भी देना पड़ता है। 8 घंटे काम कराने पर सिर्फ मजदूरी मिलती है। रुद्राक्ष एकत्र करने वाले नारायणगढ़ निवासी मजदूर सर्वजीत थापा, तेज बहादुर थापा के मुताबिक वे एक दिन में एक से डेढ़ क्विंटल रुद्राक्ष एकत्र कर लेते हैं।

इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल और भारत में होता है रुद्राक्ष

विश्व का 70 प्रतिशत रुद्राक्ष इंडोनेशिया और मलेशिया में होता है। इंडोनेशिया और मलेशिया के रुद्राक्ष मटर के दानों के बराबर होते हैं। शेष 25 प्रतिशत नेपाल और 5 प्रतिशत रुद्राक्ष भारत सहित दूसरे देशों में होता है। नेपाल-भारत में पैदा होने वाले रुद्राक्ष आकार में बड़े होते हैं। विश्व में पैदा होने वाले रुद्राक्ष की 70 प्रतिशत खपत अकेले हरिद्वार में है। एक मुखी और 15 से 21 मुखी रुद्राक्ष बहुत कम मिलते हैं। इस कारण इनकी कीमत भी मुंहमांगी मिलती है।

रुद्राक्ष का पेड़ दिखता कैसा है

रुद्राक्ष के पेड़ आम के पेड़ जैसे दिखते हैं। एक पौधा 20 फीट से 150 फीट तक ऊंचा होता है। इसके फूल सफेद और फल गूलर जैसे दिखते हैं। कच्चे रहने पर फल हरे और पकने पर नीला हो जाता है। राज्य वन अनुसंधान केंद्र जबलपुर के वैज्ञानिक उदय होमकर के मुताबिक रुद्राक्ष के पौधे में 8 से 10 साल में फल आता है। हर साल फल अक्टूबर में आते हैं और दिसंबर तक पक जाते हैं। इसका छिलका हटाकर गुठली निकाली जाती है। इसी गुठली को रुद्राक्ष कहते हैं। गुठली चटकने पर इसके अंदर से 1 से 3 तक बीज निकलते हैं। इस बीज से रुद्राक्ष की नर्सरी भी तैयार कर सकते हैं।

एमपी के अमरकंटक में भी हैं रुद्राक्ष के पेड़

जबलपुर के वन अनुसंधान केंद्र और अमरकंटक में भी 100 के लगभग रुद्राक्ष के पेड़ हैं। फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, जबलपुर में लगे तीन पेड़ों के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों का दावा है कि जबलपुर के आसपास भी इसकी खेती की जा सकती है। संस्थान ने रुद्राक्ष के 30 पौधे तैयार किए हैं। एक पौधे की कीमत 300 रुपए है। रुद्राक्ष को फल के अलावा कलम विधि द्वारा भी तैयार किया जा सकता है। एक ही पेड़ से अलग-अलग मुखी रुद्राक्ष प्राप्त होते हैं। सबसे अधिक पांच मुखी रुद्राक्ष मिलते हैं। वयस्क पौधे से 40 किलो तक रुद्राक्ष मिल सकता है। यह पौधा जंगली श्रेणी का माना जाता है।

पंडित रघुनाथ उपाध्याय के मुताबिक एक मुखी से 21 मुखी रुद्राक्ष का अलग-अलग प्रभाव धारण करने वाले पर पड़ता है।

रुद्राक्ष की कीमत (रुपए में) और उसका ज्योतिषीय प्रभाव

  • 1 मुखी-1200 से 1 लाख-कमजोर सूर्य वाले धारण करें। आंख, सिरदर्द, पेट, हड्डी और ब्‍लड प्रेशर संबंधी बीमारियों में राहत देता है।
  • 2 मुखी-300 से 4800-कमजोर चंद्रमा को मजबूत करता है। व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत होता है।
  • 3 मुखी-1000 से 5000-मंगल और सूर्य संबंधी दोष दूर होते हैं। छात्रों को अधिक फायदा होता है।
  • 4 मुखी-4000 से 12000-इस रुद्राक्ष का संबंध बुध ग्रह से होता है। ये ज्ञान, बुद्धि, धन और वैभव बढ़ाता है।
  • 5 मुखी-300 से 12000-बृहस्पति ग्रह को मजबूत करता है। अकाल मृत्यु से बचाता है।
  • 6 मुखी-300 से 14000-मंगल दोष को दूर करता है। वैवाहिक जीवन को सफल बनाता है।
  • 7 मुखी-600-ये शुक्र ग्रह को मजबूत बनाता है। इसके उपयोग से मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
  • 8 मुखी-3 से 15 हजार-राहु ग्रह के दोषों से बचाता है। ये अष्ट सिद्धियों को प्रदान करता है।
  • 9 मुखी-4500-मां नव दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। कीर्ति और मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
  • 10 मुखी-5500-नव ग्रह शांत रहते हैं। प्रसिद्धि और सम्मान मिलता है।
  • 11 मुखी-5200-मंगल दोष दूर करता है। भूत-प्रेत, देवी बाधा और शत्रु भय से बचाता है।
  • 12 मुखी-2100-सूर्य के दुष्प्रभाव को दूर करता है। तनाव घटाता है।
  • 13 मुखी-3000-कामदेव का स्वरूप माना जाता है। दांपत्य जीवन सुखमय बनाता है।
  • 14 मुखी-5100-काले जादू से बचाता है। शनि के कष्टों को हरता है।
  • 15 मुखी-9 से 15 हजार-भगवान शिव का स्वरूप माना गया है। हर कार्य में सफलता दिलाता है।
  • 16 मुखी-5 से 25 हजार-भगवान शिव और विष्णु का प्रतीक है।
  • 17 मुखी-12 से 16 हजार-शनि के अशुभ प्रभाव को दूर करता है। सिरदर्द और साइनस दूर करता है।
  • 18 मुखी-8 से 13 हजार-भैरव का प्रतीक माना जाता है। यह कुंडली में कपाल दोष को दूर करता है।
  • 19 मुखी-11 से 15 हजार-यह कवच की तरह सुरक्षा प्रदान करता है। भौतिक और आर्थिक सुख मिलता है।
  • 20 मुखी-12 से 25 हजार-नव ग्रह और चंद्रमा के दुष्प्रभाव से बचाता है। धन और आध्यात्मिक सुख प्रदान करता है।
  • 21 मुखी-15 से 40 हजार-इस रुद्राक्ष में कुबेर के साथ ब्रह्मा, विष्णु व महेश का वास माना जाता है। ये अपार समृद्धि लाता है।

रुद्राक्ष की तरह भद्राक्ष भी होता है

रुद्राक्ष से मिलता-जुलता भद्राक्ष भी होता है। इसके दाने छोटे होते हैं। कई जगह इसे रुद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, जबलपुर के वैज्ञानिक उदय होमकर ने बताया कि भद्राक्ष अधिक नमी वाली चौड़ी पत्ती वाला पौधा होता है। ये समुद्र किनारे मिलता है। रुद्राक्ष में आम की तरह कम नमी वाली पत्तियां होती हैं। ये पहाड़ी क्षेत्रों में मिलता है। भद्राक्ष कटिंग से आसानी से उगाया जा सकता है। रुद्राक्ष को कटिंग से उगाने पर रिसर्च चल रहा है। इसमें शुरुआती सफलता मिली है।

पंडित मिश्रा बोले- क्या भास्कर सब जगह गया था, रुद्राक्ष वहीं मिलते हैं

इस मामले पर हमने पंडित प्रदीप मिश्रा से 24 मार्च को धार के कोटेश्वर तीर्थ में शुरू हुई कथा के दौरान पूछा था कि आप दावा कर रहे हैं कि गंडकी नदी किनारे रुद्राक्ष मिलता है, लेकिन वहां तो रुद्राक्ष मिलता ही नहीं है। इस पर पंडित मिश्रा ने कहा था कि क्या भास्कर पूरी गंडकी नदी किनारे गया होगा। रुद्राक्ष वहीं मिलते हैं।

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