गणतंत्रीय प्रणाली पर ब्राह्मण धर्म का षड्यंत्रकारी हमला।
दयाराम पीपीआई।
आर्य ब्राह्मणी संस्कृति के विचारों में विषमता, आचरण में विषमता, संस्कारों में विषमता, तथा त्योहारों में भी विषमता है। ठीक इसी प्रकार ब्राह्मण के लिए रक्षाबंधन,क्षत्रिय के लिए विजयदशमी, वैश्य के लिए दीपावली और शुद्र के लिए होली है। सांस्कृतिक तौर पर सभी वर्णों के लिए अलग-अलग त्यौहार हैं।आर्य ब्राह्मण मूलनिवासी बहुजनो के गौरवशाली इतिहास ट्रुथ को त्योहारों के माध्यम से मिथ में बदल दिया। इसे लोगों को समझने की जरूरत है।इतिहास इस बात का साक्षी है कि मौर्य साम्राज्य में दस राजा हुए। सम्राट अशोक सबसे महान राजा हुआ जिसने हिंसा को त्यागकर अहिंसा का मार्ग अपनाया और अपने गणराज्यों का विस्तार कर भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाया।मौर्य साम्राज्य के दसवें राजा बृहद्रथ की हत्या उसी के ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने किया। भारत के मूलनिवासी अपने अतीत का आकलन कर अपने गौरवशाली इतिहास से अपने भविष्य को उज्जवल बनाने का मुहिम न छेड़ दे इसलिए ब्राह्मणों ने विजयदशमी पर्व का निर्माण किया और मौर्य साम्राज्य के दसों राजाओं को दशानन घोषित किया जिसे आज रावण के रूप में प्रचारित किया जाता है।जिसके दस सिर और बीस भुजाएं बनाकर उसे रावण के रूप में प्रदर्शित कर उसके पूतले को प्रतिवर्ष दहन किया जाता है जो दशानन अर्थात रावण का दहन नहीं बल्कि मौर्य साम्राज्य का दहन है, यह गणतंत्र प्रणाली का दहन है। बृहद्रथ के हत्यारे पुष्यमित्र शुंग को महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में राम के रूप में घोषित किया। भारत में विजयदशमी जो मनाई जाती है उसमें लोग रावण का पुतला जलाकर खुशियां मनाते हैं जिसमें भारत के मूलनिवासी सबसे आगे दिखाई देते हैं। मौर्यकालीन भारत के दसों राजाओं ने आर्य ब्राह्मणी संस्कृति को निगल लिया था जिस कारण उन्होंने मौर्य सम्राटों को दशानन कहा और एक दस मुखों और बीस भुजाओं का भयंकर काल्पनिक पुतला बनाकर उसे रावण घोषित कर दिया। आर्य ब्राह्मणों ने अपने बौद्धिक षडयन्त्र से मूल निवासियों और ब्राह्मणों के बीच हुए खून खराबे के इतिहास को खुशियों में तब्दील कर दिया जिसे देशवासी आज विजयदशमी के रूप में मनाते हैं।
आर्यों का दूसरा बौद्धिक षडयन्त्र गणपति बप्पा मोरिया है जिसके जनक बाल गंगाधर तिलक है जिस बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान घोषणा की थी कि स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। देश की स्वतंत्रता की सुगबुगाहट जब प्रारंभ हुई तो अन्य पिछड़े वर्ग के कुछ नेता बाल गंगाधर तिलक के पास पहुंचे और उन्होंने संसद और विधानसभाओं में अपनी भागीदारी की बात रखी जिस पर बाल गंगा तिलक ने कहा, “मेरी समझ में नहीं आता कि तेली, तमोली और कुनभटे संसद में क्यों जाना चाहते हैं? तेली संसद में जाकर क्या तेल बेचेगा? तमोली संसद में जाकर कपड़ा सिलेगा और कुर्मी संसद जाकर क्या हल चलायेगा? उसी बालगंगाधर तिलक ने 1893 में गणपति महोत्सव की शुरुआत की जो बौद्ध कालीन भारत की गण पद्धति पर प्रहार था जिस पर संस्कृत भाषा के विद्वान दिनेश राय द्विवेदी लिखते हैं- “गणपति महोत्सव सर्वप्रथम शुरू करने वाले बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में गणपति बिठाया। दस दिन तक सभा और सम्मेलनों को संबोधित किया। बिठाए गए गणपति की दसवे दिन फेरी निकाली। गणपति का दर्शन सभी के लिए खुला रखा था। मौके का भरपूर फायदा उठाते हुए एक दलित ने दर्शन के दौरान मूर्ति को छू लिया और गणपति अपवित्र हो गए ऐसा कहते हुए ब्राह्मणों में खलबली सी मच गई और सभी तिलक को गरियाने लगे और कहने लगे कि देखो गणपति को सार्वजनिक किया तो दलित के मूर्ति स्पर्श से धर्म डूब गया। ब्राम्हण अपवित्र गणेश मूर्ति को घर में कैसे रखेगा? तब तक गणपति यात्रा पुणे से बाहर मुलामुठा नदी के पास पहुंच चुकी थी। तभी आराम से तिलक ने कहा! चिल्लाते क्यों हो? शांत रहो!मैं धर्म को कैसे डूबने दूंगा? धर्म को डुबाने के अपेक्षा हम इस मूर्ति को ही नदी में डूबा देते हैं और इस प्रकार गणपति को डूबा दिया गया तभी से प्रत्येक वर्ष दस दिन अछूतों द्वारा अपवित्र हुई गणपति की मूर्ति को नदी में डुबो दिया जाता है जिसे कलम कसाई विसर्जन कहते हैं”।
कोई भी चोर तभी पकड़ा जाता है जब वह कोई न कोई अपना सबूत छोड़ जाता है। महर्षि बाल्मीकि ने रामायण लिखा है। उसकी एक कथा प्रसंग में बृहद्रथ की चर्चा है तो दूसरे कथा प्रसंग में बौद्ध कालीन राजा प्रसनजीत की चर्चा है। अयोध्या कांड के जावाल नास्तिक संवाद में तथागत बुद्ध की चर्चा है तो बाल्मीकि रावण के अनेकों स्थानों पर अशोक की चर्चा है। हैरत इस बात की कि बाल्मीकि रामायण में बौद्ध एवं मौर्यकालीन भारत के सोलह गणराज्यों की चर्चा है। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां गणपद्धति का शुभारंभ बौद्ध कालीन भारत में हुआ था। बाल्मीकि रामायण में राजा दशरथ आर्य संस्कृति के अनुरूप ही अपनी पत्नी के साथ🙄 वादाखिलाफी के बाद❤️ उसे समझाते हुए कहते हैं-
“यावदाबर्तते चक्रों मालती मे बसुन्धरा।द्राविणा सिन्धु सौवीरा: सौराष्ट्रा: दक्षीणा पथा:। बंगंअंगमगधा मत्सया समृद्धा: काशी कोशला”। बाल्मीकि रामायण अयोध्या कांड सर्ग 10 श्लोक नंबर 36, 37
अर्थ-जहां तक सूर्य का चक्र घूमता है वहां तक सारी पृथ्वी मेरे अधिकार में है। द्रविड़, सिंधु,सौवीर सौराष्ट्र दक्षिण भारत के सारे प्रदेश तथा अंग ,बंग, मगध, काशी और कौशल इन सभी समृद्धिशाली देशों पर मेंरा आधिपत्य है। महारानी क्यों नाराज हो हमारे पास किस बात की कमी है? इस प्रकार आर्य ब्राह्मणों ने ब्राह्मण धर्म के द्वारा भारत के मूल निवासियों की सभ्यता गणतंत्र प्रणाली पर कातिलाना हमला करके उनकी दिशा बदलने में कामयाबी हासिल किया। क्योंकि भय और भ्रम आर्य ब्राह्मणों का प्रबल एवं प्रखर शस्त्र है जिससे वे भारत के मूल निवासियों के इतिहास पर पर्दा डालने का प्रयास करते हैं और वे आज ऐसा करने में सफल हैं। इतना ही नहीं वर्तमान भाजपा सरकार भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य पद्धति को नष्ट कर हिंदू राष्ट्र निर्माण के लिए राग अलापते नजर आते हैं और यहां तक की शासक जातियों ने 9 अगस्त दो हजार अट्ठारह को भारत के संविधान को जंतर मंतर पर जला दिया था। जो भारत का संविधान भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय अवसर की समानता प्रधान करने के लिए प्रतिबद्ध है।