ँंँ. # अध्यात्म का बाप विज्ञान #
धर्मवादी शेखी बघारते हुए कहते हैं अध्यात्म अंतिम सत्य है और विज्ञान उसके आगे कुछ नहीं। विज्ञान जहां खत्म होता है अध्यात्म वहां से आरंभ होता है। जबकि है बिल्कुल उल्टा।अध्यात्म जहां से खत्म होता है विज्ञान वहां से शुरू होता है।
अध्यात्म खोजी धर्मसंस्थापकों ईश्वर पुत्रों पैगम्बरों और ऋषियों के पास किसी विषय की सही जानकारी के लिए आज की तरह शोध अनुसंधान के कोई साधन न थे।केवल आंख बंद कर जिस विषय में जो चाहा बता दिया और उसे अंतिम सत्य कहकर भविष्य में उस पर शोध अनुसंधान की मनाही कर दी गई।
जैसे अध्यात्म ने कह दिया धरती चपटी है,सूर्य धरती का चक्कर लगाता है,वर्षा इंद्रदेवता कराते हैं।सुनकर लोगों ने इन्हें अंतिम सत्य मान लिया।बस यहीं से अध्यात्य की सीमा समाप्त हो गयी और विज्ञान ने इसकी सत्यता जांचनी शुरू कर दी तो उसने अपनै शोध अनुसंधान और प्रत्यक्ष प्रयोग से यह सिद्धकरके कि पृथ्वी चपटी नहीं
गोल है,पृथ्वी का सूर्य नहीं बल्कि सूर्य का चक्कर पृथ्वी लगाती है तथा वर्षासमुद्र के वाष्पन से होती है,अध्यात्म के झूंठ की पोल खोल दी।
अध्याम और विज्ञान में से मनुष्य जीवन में किसका कितना महत्त्व है ,कौन त्याज्य
औऱ कोन ग्राह्य है इसका एक ही बात से पता चल जाता है कि अध्यात्म के अंतिम ज्ञानवान लोगों में से कोई एक सुई तक न बना सका और विज्ञान के निर्मित उपकरणों को त्याग कर एक अध्यात्मज्ञानी भी ठीक से जी नहीं सकता।जबकि अध्यात्मवाद से दूर का रिश्ता न रखने वाले मेरे जैसे,करोड़ों लोग आनंद पूर्वक जी रहे हैं।
सच तो यह है कि विज्ञान अध्यात्म का बाप है ।उसी के निर्मित उपकरणों के द्वारा आज वह अपने झूंठ का प्रचार प्रसार करने में लगा है।