सबका डीएनए एक है, पोस्ट बेशक थोड़ी सी बड़ी हो गई है,लेकिन डीएनए जांच को समझने के लिए ये पोस्ट पढ़ने के लिए थोड़ा सा वक्त जरूर निकालें।
पहली बात….
भागवत ने बताया था सभी भारतीयों का एक डीएनए, गौरतलब है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम में रविवार को कहा था कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है, चाहे वे किसी भी धर्म के हों. उन्होंने कहा था कि हिंदू-मुस्लिम एकता भ्रामक है क्योंकि वे अलग-अलग नहीं, बल्कि एक हैं. पूजा करने के तरीके के आधार पर लोगों में भेद नहीं किया जा सकता.
आरएसएस प्रमुख ने कहा था कि , ‘‘यदि कोई कहता है कि मुसलमानों को भारत में नहीं रहना चाहिए तो वह हिन्दू नहीं है. हम एक लोकतंत्र में हैं. यहां हिन्दुओं या मुसलमानों का प्रभुत्व नहीं हो सकता. यहां केवल भारतीयों का वर्चस्व हो सकता है.’
ब्राह्मण किसी भी ब्राह्मण विरोधी मुद्दे पर तब तक खामोश रहते हैं,जब तक वो मुद्दा उन के अस्तित्व के लिए खतरा न बन जाए।बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय वामन मेश्राम साहब जी ने एक ऐसे मुद्दे को देश के कोने-कोने तक पहुंचा दिया, जिसे ब्राह्मण छुपाए रखना चाहते थे।
देश में कोई भी संगठन का कोई भी नेता चाहे वो खुद को कितना भी बड़ा तीस मार खां समझता हो,लेकिन एक भी ऐसा नेता नहीं है,जिस ने देश के सब से बड़े ब्राह्मणवादी संगठन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को इस तरह से नागपुर में जा कर उसे चुनौती दी हो और सार्वजनिक तौर पर ब्राह्मणों को विदेशी कहा है।
ब्राह्मण के विदेशी होने की चर्चा से मोहन भागवत को लगने लगा है कि अब और ज्यादा दिनों तक डीएनए जांच रिपोर्ट पर खामोश रहना उन के लिए मुसीबत बनता जा रहा है, इसलिए उसे सार्वजनिक तौर पर आ कर बोलना ही पड़ा और एक षड्यंत्र के तहत ख़ुद के विदेशीपन को छुपाने के लिए बयान दिया कि सभी भारतीयों (हिंदुओं और मुसलमानों)का डीएनए एक ही है।
ऐसा बोल कर वो एक तीर से दो शिकार करना चाहता है। पहला ये कि अब तक वो मुसलमानों को विदेशी कहते आ रहे हैं,उस पर पर्दा डालने की कोशिश की गई। दूसरा ब्राह्मणों का डीएनए विदेशी है,इस सच्चाई को छुपाने के लिए बोलना पड़ा कि सभी भारतीयों का डीएनए एक ही है।
लेकिन बामसेफ ने देश भर में ब्राह्मण के विदेशी होने का मुद्दा घर घर पहुंचा दिया है, मोहन भागवत चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, कितना भी दबाने की कोशिश कर ले, ये मुद्दा अब दबने वाला नही है ।
कैसे सबका डीएनए एक है ? यह एक झूठ फैलाने की साजिश है
👉DNA शोध से सामने आया कि ब्राह्मण,राजपूत और वैश्य भारत के मूलनिवासी नहीं है : आर्य बाहर से भारत आए थे!
21 मई, 2001 को अख़बार “TIMES OF INDIA” में भारत के लोगों के DNA से सम्बंधित शोध रिपोर्ट छपी लेकिन मातृभाषा या हिंदी अखबारों में यह बात क्यों नहीं छापी गयी? क्योकि इंग्लिश अखबार ज्यादातर विदेशी लोग यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य लोग ही पढ़ते है मूलनिवासी लोग नहीं। विदेशी यूरेशियन जानकारी के बारे में अतिसंवेदनशील लोग है और अपने लोगो को बाख़बर करना चाहते थे, ये इसके पीछे मकसद था। मूलनिवासी लोगो को यूरेशियन सच से अनजान बनाये रखना चाहते है।
THE HIDE AND THE HIGHLIGHT TWO POINT PROGRAM. सुचना शक्ति का स्तोत्र होता है।
DNA Report 2001यूरोपियन लोगो को हजारों सालों से भारत के लोगो, परम्पराओं और प्रथाओं में बहुत ज्यादा दिलचस्पी है। क्योकि यहाँ जिस प्रकार की धर्मव्यवस्था,वर्णव्यवस्था, जातिव्यवस्था, अस्पृश्यता, रीति-रिवाज, पाखंड और आडम्बर पर आधारित धर्म परम्पराए है, उनका मिलन दुनिया के किसी भी दूसरे देश से नहीं होता। इसी कारण यूरोपियन लोग भारत के लोगों के बारे ज्यादा से ज्यादा जानने के लिए भारत के लोगों और धर्म आदि पर शोध करते रहते है। यही कुछ कारण है जिसके कारण विदेशियों के मन में भारत को लेकर बहुत जिज्ञासा है।
इन सभी व्यवस्थाओं के पीछे मूल कारण क्या है इसी बात पर विदेशों में बड़े पैमाने पर शोध हो रहे है।मुश्किल से मुश्किल हालातों में भी विदेशी भारत में स्थापित ब्राह्मणवाद को उजागर करने में लगे हुए है। आज कल बहुत से भारतीय छात्र भी इन सभी व्यवस्थों पर बहुत सी विदेशी संस्थाओं और विद्यालयों में शोध कर रहे है।
अमेरिका के उताह विश्वविद्यालय वाशिंगटन में माइकल बामशाद नाम के आदमी ने जो BIOTECHNOLOGY DEPARTMENT का HOD ने भारत के लोगों के DNA परीक्षण का प्रोजेक्ट तैयार किया था। बामशाद ने प्रोजेक्ट तो शुरू कर दिया, लेकिन उसे लगा भारत के लोग इस प्रोजेक्ट के निष्कर्ष (RESULT REPORT)को स्वीकार नहीं करेंगे या उसके शोध को मान्यता नहीं देंगे। इसलिए माईकल ने एक रास्ता निकला। माईकल ने भारत के वैज्ञानिकों को भी अपने शोध में शामिल कर लिया ताकि DNA परिक्षण पर जो शोध हो रहा है वो पूर्णत पारदर्शी और प्रमाणित हो और भारत के लोग इस शोध के परिणाम को स्वीकार भी कर ले।
इसलिए मद्रास, विशाखापटनम में स्थित BIOLOGUCAL DEPARTMENT,भारत सरकार मानववंश शास्त्र – ENTHROPOLOGY के लोगों को भी माइकल ने इस शोध परिक्षण में शामिल कर लिया। यह एक सांझा शोध परीक्षण था जो यूरोपियन और भारत के वैज्ञानिको ने मिल कर करना था। उन भारतीय और यूरोपियन वैज्ञानिकों ने मिलकर शोध किया। ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों के डीएनए का नमूना लेकर सारी दुनिया के आदमियों के डीएनए के सिद्धांत के आधार पर, सभी जाति और धर्म के लोगों के डीएनए के साथ परिक्षण किया गया।
यूरेशिया प्रांत में मोरूवा समूह है,रूस के पास काला सागर नमक क्षेत्र के पास,अस्किमोझी भागौलिक क्षेत्र में,मोरू नाम की जाति के लोगों का DNA भारत में रहने वाले ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों से मिला। इस शोध से ये प्रमाणित हो गया कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य भारत के मूलनिवासी नहीं है।महिलाओं में पाए जाने वाले
MITICONDRIYAL DNA(जो हजारों सालों में सिर्फ महिलाओं से महिलाओं में ट्रान्सफर होता है) पर हुए परीक्षण के आधार पर यह भी साबित हुआ कि भारतीय महिलाओं का DNA किसी भी विदेशी महिलाओं की जाति से मेल नहीं खाता।
भारत के सभी महिलाओं एस सी, एस टी,ओबीसी,ब्राह्मणों की औरतों, राजपूतों की महिलाओं और वैश्यों की औरतों का DNA एक है और 100% आपस में मिलता है।
वैदिक धर्मशास्त्रों में भी कहा गया है कि औरतों की कोई जाति या धर्म नहीं होता। यह बात भी इस शोध से सामने आ गई कि जब सभी महिलाओं का DNA एक है तो इसी आधार पर यह बात वैदिक धर्मशास्त्रों में कही गई होगी। अब इस शोध के द्वारा इस बात का वैज्ञानिक प्रमाण भी मिल गया है। सारी दुनिया के साथ-साथ भारतीय उच्चतम न्यायलय ने भी इस शोध को मान्यता दी। क्योकि यह प्रमाणित हो चूका है कि किसका कितना DNA युरेशियनों के साथ मिला है।
👉ब्राह्मणों का DNA 99.99% युरेशियनों के साथ मिलता है।
👉राजपूतों(क्षत्रियों) का DNA 99.88% युरेशियनों के साथ मिलता है।
👉वैश्य जाति के लोगों का DNA 99.86% युरेशियनों के साथ मिलता है।
राजीव दीक्षित नाम का ब्राह्मण (ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर) ने एक किताब लिखी। उसका पूना में एक चाचा, जो जोशी (ब्राह्मण) है, ने वो किताब भारतमें प्रकाशित की, में भी लिखा है “ब्राह्मण, राजपूत और वैश्यों का DNA रूस में, काला सागर के पास यूरेशिया नामक स्थान पर पाई जाने वाली मोरू जाति और यहूदी जाति (ज्यूज– हिटलर ने जिसको मारा था) के लोगों से मिलता है। राजिव दीक्षित ने ऐसा क्यों किया? ताकि अमेरिकन लोग भारत के ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य जाति के लोगों को अमेरिका में एशियन ना कहे। राजीव दीक्षित ने बामशाद के शोध को आधार बनाकर यूरेशिया कहाँ है ये भी बता दिया था। राजीव दीक्षित एक महान संशोधक था और वास्तव में भारत रत्न का हक़दार था।
DNA परिक्षण की जरुरत क्यों पड़ी?
संस्कृत और रूस की भाषा में हजारों ऐसे शब्द है जो एक जैसे है।यह बात पुरातत्व विभाग, मानववंश शास्त्र विभाग, भाषाशास्त्र विभाग आदि ने भी सिद्ध की, लेकिन फिर भी ब्राह्मणों ने इस बात को नहीं माना जोकि सच थी। #ब्राहमण_ भ्रांतियां पैदा करने में बहुत माहिर है,पूरी दुनिया में ब्राह्मणों का इस मामले में कोई मुकाबला नहीं है । इसीलिए DNA के आधार पर शोध हुआ। ब्राह्मणों का DNA प्रमाणित होने के बाद उन्होंने सोचा कि अगर हम इस बात का विरोध करेंगे तो दुनिया में हम लोग बेबकुफ़ साबित हो जायेंगे। तथ्यों पर दोनों तरफ से चर्चा होने वाली थी इसीलिए ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य लोगों ने चुप रहने का निर्णय लिया।
👉“ब्राह्मण जब ज्यादा बोलता है तो खतरा है,ब्राह्मण जब मीठा बोलता है तो खतरा बहुत नजदीक पहुँच गया है और जब ब्राह्मण बिलकुल नहीं बोलता। एक दम चुप हो जाता है तो भी खतरा है।“ (यहां ये बात ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है कि ब्राह्मण कुछ भी करने से पहले उस के परिणाम के बारे में सोचता है, मतलब डीएनए जांच के मुद्दे पर ब्राह्मणों का खामोश रहना इस बात का प्रमाण है कि वो नही चाहता कि वो इस डीएनए जांच का विरोध करे, उस की खामोशी इस बात का सबूत है कि वो इस मुद्दे को दबा कर रखना चाहता है, क्योंकि उस के विरोध करने पर ये मुद्दा चर्चा में आ जायेगा और उस के विदेशी होने की बात जग जाहिर हो जायेगी)