[ad_1]
भुवनेश्वर: ओडिशा के बालसोर ट्रेन के बाद बहुत से ऐसे भी लोग हैं जो अपनों से बिछड़ गए हैं। वहीं, इस हादसे में घायल हुए नेपाल के लड़के का आखिरकार अपने माता-पिता से मिलन हो गया। लड़के की पहचान रामानंद पासवान के रूप में हुई है। पासवान का कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज में इलाज चल रहा है। रामानंद अपने तीन रिश्तेदारों के साथ कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहा था। रामानंद के पिता हरि पासवान ने कहा कि हादसे में रामानंद अपने तीन रिश्तेदारों के साथ ट्रेन में यात्रा कर रहा था। दो जून को हुए ट्रेन हादसे में रामानंद गंभीर रूप से घायल हो गया, जबकि तीन अन्य की मौत हो गई।
रामानंद की ऐसे हुई परिवार से मुलाकात
ट्रेन हादसे के बाद भारत आए रामानंद के बारे में नेपाल में रहने वाले उसके माता-पिता को कोई जानकारी नहीं मिली। इसके बाद माता-पिता अपने बेटे की तलाश में नेपाल से ओडिशा आ गए। तीन व्यक्तियों के शवों की पहचान करने के बाद, हरि और उनकी पत्नी को अपने बेटे रामानंद के लिए चिंता हुई। इस बीच, एससीबी मेडिकल कॉलेज में भर्ती रामानंद को होश आ गया। उसने अपने माता-पिता को एक टीवी पर चल रहे न्यूज चैनल पर देखा और अधिकारियों को यह जानकारी दी। इसके बाद प्रशासन अलर्ट हो गया।
रामानंद के माता-पिता उसकी तलाश में एक के बाद एक अस्पताल के चक्कर लगा रहे थे। एम्स, भुवनेश्वर में एक लोकल टीवी न्यूज चैनल को अपनी आपबीती सुनाते हुए उन्होने एक इंटरव्यू दिया था। रामानंद ने अपने कमरे में टीवी पर रिपोर्ट देखी और अपने माता-पिता की पहचान की। मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों की मदद से रामानंद को उसके माता-पिता से मिलवाया गया। एससीबी मेडिकल कॉलेज ने एक ट्वीट में कहा कि हमारे लिए भावुक पल है कि नेपाल के एक 15 वर्षीय लड़के रामानंद पासवान, जो बालेश्वर ट्रेन त्रासदी का शिकार हुआ था, वह अपने माता-पिता से मिल पाया। वह वास्तव में नेपाल से है और उसने जो जानकारी शेयर की, वह सही थी।
बेटे को मुर्दाघर से निकालकर पिता ने दी नई जिंदगी
ओडिशा के मुख्य सचिव प्रदीप जेना के मुताबिक, इस हादसे में अब तक कुल 288 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, आपको बता दें कि इन्हीं मौतों में एक और नाम जुड़ा था, जिसे मुर्दाघर में रखा गया था लेकिन एक पिता की इच्छाशक्ति की वजह से ये नाम अब मरे हुए लोगों की लिस्ट में नहीं है और अब वह जिंदा है। ये पूरा मामला 24 साल के विश्वजीत और उनके पिता हेलाराम मलिक से जुड़ा हुआ है।
यह भी पढ़ें-
ओडिशा में हुए ट्रेन हादसे के बाद विश्वजीत को मरा हुआ समझ लिया गया था और उनके शरीर को बाहानगा हाई स्कूल में बने अस्थायी मुर्दाघर में रखा गया था। वहीं हावड़ा जिले के रहने वाले विश्वजीत के पिता हेलाराम मलिक ओडिशा हादसे के बाद अपने बेटे को लगातार फोन लगा रहे थे। लेकिन ये फोन उठ नहीं रहा था। ऐसे में हेलाराम मलिक 253 किलोमीटर का सफर करने के बाद ओडिशा के बालासोर जिले पहुंचे और अपने बेटे को ढूंढने की कोशिश करने लगे। उन्होंने कई हॉस्पिटल में जाकर देखा लेकिन उनका बेटा नहीं मिला। इसके बाद वह बाहानगा हाई स्कूल में बने अस्थायी मुर्दाघर पहुंचे, जहां उनके बेटे का बेसुध शरीर दिखा। उन्हें महसूस हुआ कि उनका बेटा अभी जिंदा है।
विश्वजीत का शरीर नहीं कर रहा था हरकत, पिता को था सही होने का विश्वास
हेलाराम मलिक अपने बेटे को मुर्दाघर से निकालकर बालासोर अस्पताल ले गए और फिर कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल ले आए। विश्वजीत की कई हड्डियों में चोट लगी थी और एसएसकेएम अस्पताल के ट्रॉमा केयर सेंटर में उसकी दो सर्जरी की गईं। एसएसकेएम अस्पताल के एक डॉक्टर ने बताया कि विश्वजीत के शरीर ने शायद हरकत करनी बंद कर दी होगी, जिसकी वजह से लोगों ने समझ लिया कि उसकी मौत हो चुकी है।
(इनपुट- IANS)
[ad_2]
Source link