” क्या नाम है बे तेरा” हेडमास्टर कलीराम ने कमरे में बुला के ओमप्रकाश से पूछा।
” ओमप्रकाश!मैंने डरते डरते धीमे स्वर में अपना नाम बताया।
‘ चूहड़े का है? ” हेडमास्टर का दूसरा प्रश्न था।
“जी”
” ठीक है जा…. वो जो सामने शीशम का पेड़ है उस पर चढ़ जा और पत्तो वाली झाड़ू बना के पूरे स्कूल कू ऐसा चमका दे जैसे सीसा…. ये तो तेरा खानदानी काम है …. जा फटाफट लग जा काम पर” हेडमास्टर ने आदेश दिया।
हेडमास्टर के आदेश पर मैंने स्कूल के कमरे साफ़ कर दिए , तभी खुद चल के आये और बोले की इसके बाद मैदान भी साफ़ कर दे ।
वह लंबा चौड़ा मैदान मेरे वजूद से कई गुना बड़ा था , मेरी कमर दर्द करने लग गई स्फ करते करते। मैं यह सोच के चुप हो गया कि इसके बाद मुझे कक्षा में बैठने दिया जायेगा पर यह न हुआ।
तीसरे दिन फिर हेडमास्टर ने फिर मुझे स्फाई के काम पर लगा दिया , बाकी बच्चे पढ़ रहे थे और मैं झाड़ू लगा रहा था।आँख से आंसू झर झर बह रहे थे। दरवाजे के पीछे से मास्टरों और लड़कों की नजरें मेरा तमाशा देख रही थी। मेरा रोम रोम यातना की गहरी खाई में लगतार गिर रहा था।
अचानक पिता जी उधर से गुजरे , मुझे मैदान में झाड़ू लगाते देख ठिठक गए। जब उन्होंने मास्टर से इस बात की शिकायत की तो हेडमास्टर ने तेज आवाज़ में कहा था – ले जा इसे यंहा से … चूहड़ा होंके पढ़ने चला है…. नही तो हाथ गोड तुड़वा दूंगा”,
- अपनी आत्मकथा ‘ जूठन’ से ओमप्रकाश वाल्मीकि।
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मास्टर साहब ने लगभग रुआंसा होंके बताया कि द्रोणाचार्य ने भूख से तड़पते हुए अश्वत्थामा को आटे का घोल पिलाया था दूध की जगह। द्रोण की गरीबी का दारुण दुःख सुन पूरी कक्षा हाय हाय कर उठी थी। यह प्रसंग व्यास ने द्रोण की गरीबी दर्शाने के लिए रचा था।
मैंने कक्षा में खड़े होंके मास्टर से एक सवाल पूछ लेने की धृष्ठता की थी। अश्वत्थामा को को तो दूध की जगह आटे का घोल पिलाया गया और हमें चावल का मांड। फिर किसी महाकाव्य में हमारा जिक्र क्यों नहीं आया? किसी महाकवि ने हमारे जीवन पर एक भी शब्द क्यों नहीं लिखा?
समूची कक्षा मेरा मुंह देखने लगी । जैसे मैंने निरर्थक प्रश्न उठा दिया हो। मास्टर चीख उठा ” घोर कलयुग आ गया है …..जो एक अछूत जबान जोरी कर रहा है।
मास्टर ने मुझे मुर्गा बना दिया और शीशम की एक लंबी छड़ी लाने का आदेश दिया था।
“चूहड़े तू द्रोणाचार्य की बराबरी करे है, ले तेरे ऊपर
मैं महाकाव्य लिखूंगा”। उसने मेरी पीठ पर सटाक-सटाक छड़ी से महाकाव्य लिख दिया।
- अपनी आत्मकथा ‘जूठन ‘ से ओमप्रकाश वाल्मीकि।
आज इसी दलित साहित्य के अनमोल रत्न ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का परिनिर्वाण दिवस है….. नमन ऐसे कलम के योद्धा को जिसने बचपन से कदम कदम पर जातीय उत्पीडना और घोर गरीबी सहते हुए दलितो की पीड़ा को साहित्य रूप दिया
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