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बहुमूल्य धातुओं में सोने (GOLD) का बेहद खास महत्व है। इसकी डिमांड भी काफी है। भारत और चीन जैसे देशों में खासकर गोल्ड जूलरी की सबसे ज्यादा डिमांड है। परंपरागत तौर पर इसे निवेश का सबसे सुरक्षित साधन माना जाता है। सोने की कीमत में कई बार भारी उतार-चढ़ाव भी देखने को मिलता है। आखिर ऐसा क्यों होता है, कभी सोचा है आपने? आखिर सोने की कीमत दुनियाभर में किन वजहों से घटती या बढ़ती है। आप यह भी सुनते होंगे कि सोने में निवेश भारी बढ़ोतरी हो रही है तो कभी सोने की डिमांड कम हो गई या स्थिर है। इन तमाम परिस्थितियों के पीछ कई ऐसे फैक्टर (gold price factors) हैं जो सोने की कीमत (gold price) को प्रभावित करते हैं। आइए, हम यहां इसे समझते हैं।
सोन की डिमांड का है रोल
सोने की कीमत में डिमांड का भी अपना रोल है। भारत जैसे देश में सोना संस्कृति का हिस्सा है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) ने अपनी वेबसाइट पर भारत में सोने की खपत के बारे में जानकारी देते हुए बताया है कि शादियां भारत में सालाना सोने की डिमांड का लगभग 50 प्रतिशत पैदा करती हैं। हालांकि, वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल ने अगस्त 2023 में कहा था कि 2023 में भारत की सोने (GOLD)की मांग एक साल पहले की तुलना में 10% गिरकर तीन साल में सबसे कम हो सकती है, क्योंकि रिकॉर्ड ऊंची कीमतें खुदरा खरीदारी को कम कर रही हैं। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े सोने के उपभोक्ता में कम खरीदारी इंटरनेशनल प्राइस में तेजी को सीमित कर सकती है।
अस्थिरता से सुरक्षा
संकट में सोना तुरंत काम आने वाला साधन है। कई लोग खुद को अस्थिरता और अनिश्चितता से बचाने के लिए सोने में निवेश करते हैं। इसे हेज के तौर पर इस्तेमाल करें। भारतीय परिवार सोने को एक सुरक्षित आश्रय के तौर पर देखते हैं। एक ऐसी संपत्ति जिसे तब खरीदना चाहिए जब दूसरी संपत्तियों का मूल्य कम हो रहा हो। अच्छे और बुरे समय के लिए एक संपत्ति के रूप में सोने के महत्व को समझते हुए ज्यादातर निवेशक सोना खरीदेंगे, चाहे घरेलू अर्थव्यवस्था बढ़ रही हो या मंदी में हो।
महंगाई से बचाता है सोना
सोने (GOLD)को महंगाई के खिलाफ बचाव का एक इंस्ट्रूमेंट माना जाता है और इसकी कीमत (gold price) महंगाई के आंकड़ों पर रिएक्ट करती है। इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, जब जीवन जीने की लागत में तेजी आती है सोने की कीमत बढ़ जाती है। जब महंगाई बढ़ती है, तो मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है और इसलिए लोग सोने के रूप में पैसा रखने लगते हैं।
संकट में सोना तुरंत काम आने वाला साधन है।
ब्याज दरों से है सोने का रिश्ता
सोने का ब्याज दरों से काफी मजबूत रिश्ता है। कुछ इंडस्ट्री एक्सपर्ट का मानना है कि सामान्य परिस्थितियों में, सोने और ब्याज दरों के बीच निगेटिव संबंध होता है। बढ़ती पैदावार एक मजबूत अर्थव्यवस्था की उम्मीद का संकेत है। एक मजबूत अर्थव्यवस्था जब महंगाई को जन्म देती है और सोने (GOLD)का इस्तेमाल महंगाई के खिलाफ बचने के तौर पर किया जाता है। जब दरें बढ़ती हैं, तो निवेशक निश्चित आय निवेश को प्राथमिकता देने लगते हैं।
मॉनसून भी डालता है असर
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत जैसे देश में सोने की 60 प्रतिशत डिमांड ग्रामीण क्षेत्रों में होती है। सोने की मांग में ग्रामीण मांग अहम भूमिका निभाती है। यह मॉनसून पर निर्भर करती है। अगर अच्छा मॉनसून आया तो यहां के कस्टमर्स में खरीदने की क्षमता बढ़ जाती है तो जाहिर है सोने की डिमांड को बल मिलता है। फिर कीमत पर भी यह असर डालता है।
दूसरे एसेट कैटेगरी के एसेट के साथ है कोरिलेशन
सोने की कीमत (gold price) का दूसरे एसेट कैटेगरी से भी कहीं न कहीं संबंध होता है। कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि सभी प्रमुख एसेट कैटेगरी के साथ कम से निगेटिव कोरिलेशन (सहसंबंध) के चलते सोना एक बहुत ज्यादा प्रभावी पोर्टफोलियो डाइवर्सिफायर है। एक नियम के रूप में, सोना मेन एसेट कैटेगरी के साथ कोई सांख्यिकीय रूप से रिलेशन नहीं शो करता है। हाालांकि सुझाव यह भी है कि जब इक्विटी दबाव में होती है, तो सोने और इक्विटी के बीच एक विपरीत संबंध डेवलप हो सकता है।
जब जीवन जीने की लागत में तेजी आती है तो सोने की कीमत बढ़ जाती है।
दुनिया में भू-राजनीति उथल-पुथल होने पर सोना चमकता है
अगर दुनिया में कहीं युद्ध जैसे संकट पैदा हो जाएं और इसका असर ज्यादातर एसेट क्लास की कीमतों पर हो जाए तो सोने की कीमतों पर पॉजिटिव असर डालता है। यानी सोने (gold price) की कीमत में उछाल देखने को मिलती है, क्योंकि सुरक्षित आश्रय के रूप में सोने की डिमांड बढ़ जाती है।
सोने का है डॉलर से कनेक्शन
सोने का इंटरनेशनल भाव अमेरिकी डॉलर की वैल्यू के आधार पर प्रचलन में है। यही वजह है कि जब डॉलर कमजोर होता है तो इसका सीधा असर सोने की कीमत (What Drives the Price of Gold) पर पड़ता है। इससे सोने की कीमत में बढ़ोतरी होती है। अमेरिकी डॉलर (US Dollar) के गिरने से बाकी करेंसी की वैल्यू बढ़ जाती है। इससे सोना सहित बाकी प्रोडक्ट्स की भी कीमत में तेजी आती है और बाकी सामानों की डिमांड में भी बढ़ोतरी होती है। साथ ही जब अमेरिकी डॉलर का मूल्य कम होने लगता है, तो निवेशक बदलाव की तलाश में रहते हैं।
भारतीय सोने की कीमतों में रुपये-डॉलर समीकरण की भूमिका होती है। सोने (GOLD) का बड़े पैमाने पर इम्पोर्ट किया जाता है और अगर डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है, तो रुपये के संदर्भ में सोने की कीमतों में तेजी आने की संभावना रहती है। यही वजह है कि रुपये की गिरावट से यहां सोने की मांग में कमी आ सकती है। हालांकि, रुपये-डॉलर की दरों में बदलाव का डॉलर में अंकित सोने की कीमत पर कोई असर नहीं होता है।
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