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India France : फ्रांस भारत का गहरा दोस्त है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस की यात्रा पर गए थे। तब फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों ने उनका भव्य स्वागत किया था। इस यात्रा के बाद दोनों देश और करीब आए हैं। साथ ही दोनों देश रक्षा सौदों पर अहम समझौतों पर भी सहमत हुए हैं। इसी बीच खबर है कि भारत और फ्रांस के बीच एक, दो नहीं बल्कि 6 परमाणु सबमरीन को लेकर बातचीत की जा रही है। यह खबर चीन की नींद उड़ाने के लिए काफी है। ये 6 परमाणु पनडुब्बियां भारत के नौसैनिक बेड़े में शामिल होती हैं तो भारतीय नौसेना की शक्ति में क्रांतिकारी इजाफा होगा।
चीन की हिंद महासागर में बढ़ती अवैध गतिविधियां और पश्चिमी में अरब सागर में पाकिस्तान की चुनौतियों के बीच भारतीय नौसेना को परमाणु पनडुब्बियों की सख्त जरूरत है। सूत्रों की मानें तो पिछले चार साल से यह प्रस्ताव सरकार की मंजूरी न मिलने की वजह से अटका हुआ था। इसकी वजह से चुनौतियां काफी बढ़ गई थीं। अब इस पर दोनों देशों में बात की जा रही है।
भारत और चीन के बीच बड़ा अंतर
भारत के पास रूस की अकुला क्लास की परमाणु पनडुब्बी थी जिसे लीज पर लिया गया था। साल 2021 में इसकी लीज भी खत्म हो गई। ऐसे में इस समय नौसेना के पास कोई भी परमाणु पनडुब्बी नहीं है। इस कमी को दूर करने के लिए ही भारत ने फ्रांस के साथ बातचीत शुरू की है। इस बातचीत में उन संभावनाओं को तलाशा जा रहा है जो छह परमाणु पनडुब्बी का निर्माण करने से जुड़ी हुई हैं। हिंद महासागर में चीन लगातार चुनौती बनता जा रहा है, कभी अपने जासूसी जहाज तो कभी हिंद महासागर के देशों पर अपने बेड़े बनाने की कुत्सित मानसिकता के बीच भारत को अपनी नौसेना की ताकत और बढ़ाने की जरूरत रही है। ऐसे में फ्रांस से 6 पनडुब्बियों को लेकर बातचीत एक सक्रिय कदम है। भारतीय नौसेना में पनडुब्बियों की आमद के साथ ही हमारी नौसेना की ताकत भी बढ़ जाएगी। इससे चीन की अकड़ भी ढीली हो जाएगी।
चीन के पास 70 पनडुब्बियां, पर दुश्मन भी हैं बड़े देश
हालांकि ये सच है कि चीन के पास 70 से ज्यादा पनडुब्बियां हैं। इनमें 7 परमाणु बैलेस्टिक मिसाइल पनडुब्बियां हैं। लेकिन सच ये भी है कि चीन की बाउंड्री कई देशों से लगती है। समुद्री सीमा खासकर दक्षिण चीन सागर के लगभग सभी देशों से चीन ने दुश्मनी मोल ले रखी है। यही नहीं, अमेरिका से लेकर आस्ट्रेलिया तक और यूरोप से लेकर कर्ज में फंसे गरीब अफ्रीकी देशों तक के देशों को चीन फूटी आंख नहीं सुहाता है। इतने दुश्मनों से लड़ने के लिए चीन को रक्षा के क्षेत्र में मजबूरन ज्यादा खर्च करना पड़ता है।
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