सवर्ण प्रत्याशी, PDA का समीकरण…, घोसी जीत से अखिलेश यादव को मिल गया पूर्वांचल फतह का फॉर्मूला?

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घोसी उपचुनाव के नतीजे ने क्या अखिलेश यादव को पूर्वांचल फतह का फॉर्मूला दे दिया है? घोसी में सपा की जीत के बाद अखिलेश के एक पोस्ट से इसकी चर्चा तेज हो गई है? जीत के बाद सपा सुप्रीमो ने लिखा कि इंडिया टीम और पीडीए की रणनीति जीत का सफल फॉर्मूला साबित हुआ है.

पिछड़ा, दलित और मुस्लिम बहुल घोसी में सपा ने इस बार राजपूत बिरादरी से आने वाले सुधाकर सिंह को मैदान में उतारा था. सुधाकर के प्रचार के लिए अखिलेश ने पिछड़े, दलित और मुस्लिम नेताओं को कमान सौंप रखी थी.

अखिलेश की यह रणनीति काम कर गई और घोसी में सपा ने बीजेपी के कोर वोटबैंक माने जाने वाले सवर्ण वोटरों में भी सेंध लगा दिया. मतगणना के दौरान सुधाकर बैलेट राउंड से ही बढ़त बनाने में कामयाब दिखे. चुनाव में सुधाकर को करीब 1 लाख 25 हजार वोट मिले. 

चुनाव आयोग के मुताबिक कुल 2 लाख 15 हजार वोट घोसी उपचुनाव में पड़े थे. यानी सुधाकर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट लाने में सफल रहे. 

अखिलेश का पीडीए फॉर्मूला क्या है?
हाल ही में अखिलेश यादव ने एक कार्यक्रम में पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का जिक्र किया था. अखिलेश के मुताबिक बीजेपी शासन में इन तीनों वर्गों का दोहण हो रहा है, इसलिए सपा इन्हें साथ लेकर चुनाव लड़ेगी. सपा ने इसके बाद ‘एनडीए को हराएगा पीडीए’ का नारा भी दिया था.

जानकारों का कहना है कि पीडीए मुलायम के माय (मुस्लिम + यादव) समीकरण का ही एक विस्तार है. अखिलेश की नजर मायावती के उन वोटरों पर हैं, जो अभी तक बीजेपी में शिफ़्ट नहीं हुआ है. या बीएसपी की राजनीति को लेकर कन्फ्यूज है.

हाल के दिनों में उन वोटरों को साधने के लिए अखिलेश ने पार्टी के भीतर कई प्रयोग भी किए हैं. सपा के भीतर पहली बार बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर वाहिनी का गठन किया गया है. इसकी कमान बीएसपी कैडर से आए मिठाई लाल भारती को सौंपी गई है.

इसी तरह ग़ैर यादव पिछड़े और दलितों को साधने के लिए अखिलेश बीएसपी से आए स्वामी प्रसाद मौर्या, इंद्रजीत सरोज, रामअचल राजभर और लालजी वर्मा की मदद से रहे हैं. सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि पीडीए रणनीति को ही सफल बनाने के लिए विवादित बयान देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य पर अखिलेश कोई कार्रवाई नहीं करते हैं.

पूर्वांचल की सियासत और लोकसभा की 26 सीटें
पूर्वांचल में लोकसभा की क़रीब 26 सीटें हैं, जिसमें गोरखपुर, वाराणसी, आज़मगढ़, बलिया, घोसी, गाजीपुर, चंदौली, कुशीनगर, देवरिया, सलेमपुर, मिर्ज़ापुर, रॉबर्ट्सगंज, अंबेडकरनगर, जौनपुर आदि शामिल हैं.

2019 में बीजेपी को घोसी, आज़मगढ़, गाजीपुर, जौनपुर, अंबेडकरनगर जैसी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. इनमें घोसी, गाजीपुर, जौनपुर और अंबेडकरनगर में बीएसपी को जीत मिली थी, जबकि आजमगढ़ में सपा का परचम लहराया था.

चुनाव के तुरंत बाद बीएसपी और सपा का गठबंधन टूट गया, जिसके बाद बीएसपी के इस बेल्ट में सपा ने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया. मार्च 2023 में एबीपी और Matrize के सर्वे में पूर्वांचल की 26 में से 18 सीटों पर बीजेपी को बढ़त दिखाया गया था.

बीजेपी के मुकाबले सपा को सिर्फ 3 सीट मिलने का अनुमान व्यक्त किया गया था. 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा गाजीपुर, अंबेडकरनगर और आजमगढ़ की सभी सीटों पर एकतरफा जीत दर्ज की थी. 

वहीं बलिया, मऊ और जौनपुर में पार्टी का परफॉर्मेंस काफी बेहतर था. कहा जा रहा है कि सपा की कोशिश पूर्वांचल की 26 में से करीब 12-14 सीटें जीतने की है. 2004 में सपा ने पूर्वांचल की 7 और 2009 में 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

इन सीटों पर सवर्ण कैंडिडेट प्लस पीडीए की रणनीति लागू होने की चर्चा
सवर्ण उम्मीदवार देकर पीडीए समीकरण से जीतने का फॉर्मूला 2024 के चुनाव में पूर्वांचल के कई सीटों पर लागू हो सकता है. इसकी बड़ी वजह पिछड़े-दलित और मुसलमानों को गोलबंद कर बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगाने की रणनीति है. 

जिन सीटों पर घोसी की जीत का फॉर्मूला लागू होने की बात कही जा रही है, उनमें बलिया, देवरिया, घोसी, गाजीपुर और अंबेडकरनगर प्रमुख हैं. कहा जा रहा है कि लोकसभा की इन सीटों का समीकरण भी घोसी विधानसभा जैसा ही है.

अखिलेश को कांग्रेस की नई रणनीति से भी मदद मिलने की उम्मीद है. कांग्रेस ने हाल ही में भूमिहार बिरादरी के अजय राय को यूपी की कमान सौंपी है. पूर्वांचल में जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, बलिया और घोसी सीट पर भूमिहारों का दबदबा है.

इसी तरह बलिया, गोरखपुर सीट पर राजपूत और वाराणसी, कुशीनगर, देवरिया जैसी सीटों पर ब्राह्मण वोटर्स काफी प्रभावी हैं.

2019 में पूर्वांचल में सवर्ण वोट बीजेपी को थोक भाव में मिला था. 2019 में पूर्वांचल से सवर्ण समुदाय के 8 नेता जीतकर संसद पहुंचे थे, जिसमें 6 नेता बीजेपी के थे. सवर्ण समुदाय से आने वाले मनोज सिन्हा को भी बीजेपी ने टिकट दिया था, लेकिन वे चुनाव हार गए.

शिवपाल साथ आए, चुनाव मैनेज के लिए अब ज्यादा जद्दोजहद नहीं
अखिलेश के साथ अब चाचा शिवपाल आ गए हैं. पूर्वांचल के कई सीटों पर शिवपाल की मजबूत पकड़ है. घोसी में भी शिवपाल ने डेरा डाल रखा था. हाल ही में एक इंटरव्यू में अखिलेश ने हार की वजह का जिक्र करते हुए कहा था कि चुनाव के आखिरी वक्त में हम कुछ मैनेज नहीं कर पाते हैं. 

लेकिन घोसी में शिवपाल ने जिस तरह से आखिरी वक्त में चुनाव को मैनेज किया है, उसकी चर्चा दिल्ली तक है. पहली बार किसी चुनाव में सत्ताधारी दल ने विपक्ष पर बूथ लूटने का आरोप लगाया. घोसी के स्थानीय जानकारों का कहना है कि चुनाव के आखिरी वक्त में शिवपाल प्रशासन पर दबाव बनाने में कामयाब रहे.

कहा जा रहा है कि शिवपाल के आने से सपा अब करीबी मार्जिन से जिन सीटों पर पिछली बार हारी थी, उन पर विशेष फोकस कर रही है. इनमें पूर्वांचल की चंदौली, रॉबर्ट्सगंज, बलिया, सलेमपुर सीट प्रमुख हैं.

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