वर्कप्लेस पर उत्पीड़न जांच के लिए समितियों की कमी, सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

[ad_1]

Supreme Court expresses concern on Lack of committees to investigate harassment at workplace- India TV Hindi

Image Source : FILE PHOTO
सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए सरकारी विभागों में समितियों की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि यौन उत्पीड़न रोकथाम (पीओएसएच) कानून के सख्त कार्यान्वयन के जरिए इस मुद्दे पर तत्काल सुधार की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह कष्टदायक है कि इतने लंबे समय के बाद भी अधिनियम को लागू करने में गंभीर खामियां हैं। इसने कहा कि यह खराब स्थिति है, जो सभी राज्य पदाधिकारियों, सार्वजनिक प्राधिकरणों और निजी उपक्रमों के स्तर पर दिखाई देती है। 

न्यायालय ने जताई चिंता

न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि अधिनियम का काम कार्यस्थल पर प्रत्येक नियोक्ता द्वारा आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी) के गठन और उपयुक्त सरकारों द्वारा स्थानीय समितियों (एलसी) तथा आंतरिक समितियों (आईसी) के गठन पर केंद्रित है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुचित तरीके से गठित आईसीसी/एनसी/आईसी, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत की जांच करने में एक बाधा होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह व्यर्थ होगा कि अनुचित तरीके से तैयार कोई समिति आधी-अधूरी जांच कराए, जिसके संबंधित कर्मचारी को बड़ा दंड देने जैसे गंभीर परिणाम हो सकते हैं। 

समितियों का हो गठन

इसने कहा कि भारत संघ, सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह सत्यापित करने के लिए एक समयबद्ध कवायद करने का निर्देश दिया जाता है कि सभी संबंधित मंत्रालयों, विभागों, सरकारी संगठनों, प्राधिकरणों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, संस्थानों, निकायों आदि में समितियों का गठन हो और उक्त समितियों की संरचना सख्ती से पीओएसएच अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप हो। पीठ ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि समितियों के गठन और संरचना के संबंध में आवश्यक जानकारी, नामित व्यक्तियों के ई-मेल आईडी और संपर्क नंबरों का विवरण, ऑनलाइन शिकायत प्रस्तुत करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया, साथ ही प्रासंगिक नियम, विनियम और आंतरिक नीतियां संबंधित प्राधिकरण / कार्यकारी / संगठन /संस्था/निकाय की वेबसाइट पर आसानी से उपलब्ध हो। 

सुनवाई के दौरान कोर्ट का निर्देश

इसने कहा कि प्रस्तुत जानकारी को समय-समय पर अद्यतन भी किया जाए। शीर्ष अदालत का निर्देश गोवा विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष ऑरेलियानो फर्नांडिस की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिन्होंने अपने खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों के संबंध में बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने गोवा विश्वविद्यालय (अनुशासनात्मक प्राधिकरण) की कार्यकारी परिषद के आदेश के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी। परिषद ने उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया था और उन्हें भविष्य के रोजगार के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था। शीर्ष अदालत ने जांच की कार्यवाही में प्रक्रियात्मक चूक और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन को ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया।

(इनपुट-भाषा)

Latest India News



[ad_2]

Source link

Leave a Comment