By: Praveen J
#Meghalaya #Diary4
बांग्लादेश के साथ सबसे लंबी सीमा पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा की है। उसके बाद क्रमशः मेघालय और मिज़ोरम हैं। सबसे छोटी सीमा असम से है। बरसात में बांग्लादेश का यह सीमावर्ती इलाक़ा डूब जाता है। हिमालय की तराई में पहाड़ों से बह कर आती अनंत धाराएँ नीचे उतर कर जम जाती है। दूर नाव चलाते बांग्लादेशियों की धुँधली झलकियाँ देखी जा सकती है।
एक स्वाभाविक प्रश्न मन में आया कि ठीक-ठाक लंबी सीमा के बावजूद मेघालय में बांग्लादेशी बस्तियाँ क्यों नहीं नज़र आती? जबकि असम, त्रिपुरा या पश्चिम बंगाल में तो उनकी बड़ी संख्या है?
“इधर का कल्चर अलग है, भाषा अलग है। बांग्लादेशी लोग आता-जाता है, मगर रुकता नहीं है। एक और प्रॉब्लम है। इधर बाहर का लोग के लिए ज़मीन लेना बहुत मुश्किल ज़मीन चाहिए तो इधर का लड़की से शादी करना होगा।”, एक होटल कर्मचारी ने कहा
“लड़की से शादी?”
“हाँ! इधर उल्टा है। लड़का शादी के बाद लड़की के घर जाता है। प्रॉपर्टी सबसे छोटा लड़की को मिलता है।”
“मतलब पिता की ज़मीन बेटे को नहीं मिलती? लड़के अपने ससुराल में घरजमाई बन कर रहते हैं?”
“हाँ! बहुत पहले से ये रूल है। इसलिए असम वालों के लिए भी मेघालय घुसना बहुत मुश्किल है। कुछ बंगाली लोग बहुत पहले आ गया या कोई नौकरी के लिए आ गया। फिर भी बाहरी लोग बहुत कम है। यहाँ की लड़की से शादी करने में खासी लोग रोकता है। जब बाकी इंडियन नहीं घुस पाता है तो बांग्लादेशी किधर से आएगा?”
“सरकार अगर ज़मीन लेकर शरणार्थियों को बसाना चाहे? ऐसा अन्य राज्यों में होता रहा है”
“गवरमेंट को भी बहुत मुश्किल से देता है। अभी पीछे आप देखा रोड कैसे घूम कर गया। वो खासी लोग ज़मीन नहीं दिया, नहीं तो रोड सीधा जाता था। जमीन सब लड़की लोग के हाथ में है। वो लोग जमीन नहीं देता है।”, गाड़ी चालक ने अपना अनुभव कहा
पहले भी यह बात दिखी थी, मगर अब ग़ौर किया तो वाकई हर दुकान पर स्त्रियाँ ही स्त्रियाँ नज़र आने लगी। वे ही गल्ला संभाल रही थी। मैं पारंपरिक खासी परिधानों की एक दुकान पर रुका, जो तीन युवतियाँ संचालित कर रही थी। कुछ महिला पर्यटक तस्वीरें खिंचवा रही थी।
“मेरे लिए कोई खासी ट्रैडिशनल ड्रेस मिलेगा?”, मैंने स्त्री परिधानों के मध्य पुरुष परिधान ढूँढते हुए पूछा
“हाँ! मेल ड्रेस भी है। आप पहन कर देखेंगे?”, उन्होंने खिलखिला कर कहा
“हाँ! दिखाइए अगर मेरे साइज का कुछ हो?”
उन्होंने एक मखमली कुर्ता और कुछ शॉल जैसा पहना कर ऊपर चाँदी की ज़ंजीरदार बेल्ट और सर पर रंगीन पगड़ी बाँध दी।
“पहले खासी लोग खरे सोने का बेल्ट पहनता था”, उन्होंने तन कर कहा
“वह तो बहुत महंगा होगा? इतना धन कहाँ से आया?”
“यहाँ बहुत धन है। सब अच्छा फ्रूट है, तेजपत्ता है, सुपारी है, तरह-तरह का मसाला है। पूरा इंडिया, चाइना, बर्मा सब जगह जाता था। अभी भी जाता है।”
“अच्छा। पहले वह पैसा सीधा आपके राजा लोगों के पास आता होगा? बाद में ब्रिटिश…”, मैंने खामखा इतिहास-बोध ठोका लेकिन उसने बात पूरी होने से पहले हाथ में एक तलवार और ढाल पकड़ा दी। मैं फ़ोटोशूट के लिए एक नकली खासी योद्धा बन चुका था।
“सुना है यहाँ की लड़की से शादी करने से उसका प्रॉपर्टी मिल जाता है?”, मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा
“इधर लड़की घर में नहीं बैठता। हन्ड्रेड परसेंट लड़की काम पर जाता है। सब संभालता है।”, उसने मूल बात टाल कर कहा
“लड़कियाँ काम करती है, तो लड़के घर संभालते हैं या शराब पीकर पड़े रहते हैं?”, मैंने पूर्वाग्रही प्रश्न पूछा
“घर में भी हेल्प करता है, बाहर बिजनेस करता है। खेत में काम करता है, घर बनाता है, टूरिस्ट गाड़ी चलाता है, पुलिस में, आर्मी में जाता है।”, उसने कुछ तल्ख़ी से कहा। मुझे भी लगा कि शराब-नशे वाली स्टीरियोटाइप बात नहीं करनी चाहिए थी।
यह मातृवंशीय समाज व्यवस्था मिशनरियों की वजह से नहीं आयी, बल्कि ऐसी व्यवस्था तो यूरोप में भी नहीं थी। यह स्थानीय संस्कृति थी, जो पूर्वोत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में भी है। मेघालय में ईसाईकरण के बाद भी सदियों से चली आ रही यह संस्कृति कायम है।
बांग्लादेश सीमा से पूर्व मैंने देखा कि सड़क किनारे पत्थरों से लदे दर्जनों ट्रक खड़े थे। मैंने तलब की तो कहा,
“ये सब पत्थर बांग्लादेश जा रहा है। अभी ईद के वजह से रुक गया है। ईद के बाद सब ट्रक निकल जाएगा…”
मेघालय की आय का यह स्रोत संभवतः प्राचीन खासी समुदाय के लिए नयी चीज हो। पहाड़ काट कर पत्थर तोड़ना और ट्रक भर-भर कर बेचना।
“सब खत्म हो रहा है अभी। आप टूरिस्ट लोग सड़क किनारे हरा-हरा पहाड़ देखता है, पेड़ देखता है। फोटो खींचता है। अंदर जाने से खाली पत्थर फैक्ट्री दिखेगा। पहाड़ सब को मशीन से ब्लास्ट कर देता है। बड़ा-बड़ा पहाड़ पत्थर का ढेर बन जाता है!”, एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा
“इतने पत्थर का करते क्या हैं?”, मैंने पूछा
“रोड, हाइवे, ओवरब्रिज…इधर और बांग्लादेश में”
एक तरफ़ प्रकृति पहाड़ों से पानी बहा कर तराई जलमग्न कर रही है। दूसरी तरफ़ मानव उन पहाड़ों को काट कर सड़क और ओवरब्रिज बना रहे हैं।
(क्रमशः)
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