भारत में ओबीसी आरक्षण

भारत में ओबीसी आरक्षण के लिए सबसे सशक्त आंदोलन पंजाब राव देशमुख ने चलाया। वह महाराष्ट्र के एक संपन्न किसान, विदेश में वकालत की पढ़ाई किए सफल वकील और स्वतंत्रता सेनानी थे। जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में देश के पहले कृषि मंत्री बने। भारत को भुखमरी से मुक्त कराया और खाद्यान्न के मामले में देश आत्मनिर्भर बना। देशमुख विदर्भ इलाके के मराठा (कुनबी) जाति के थे।
कृषि मंत्रालय की वेबसाइट से लेकर विकीपीडिया तक से वह कृषि मंत्री के रूप में गायब हैं।

मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने की मंजूरी सुप्रीम कोर्ट ने दी। 16 नवंबर, 1992 को इंदिरा साहनी मामले में फैसला आया। इस बेंच में एम कानिया, एम वेंकटचलैया, एसआर पांडियन, टी अहमदी, के सिंह, पी सावंत, आर सहाय, बीजे रेड्डी थे। बीजे रेड्डी ने फैसला लिखा था। इस बेंच में रेड्डी और सावंत (मराठा) को किसान (कुर्मी) जाति का माना जाता है। बाकी न्यायाधीशों की जाति भी आप तलाश सकते हैं, जिन्होंने साहनी मामले में फैसला दिया था और सोच सकते हैं कि कैसे न्याय मिल गया था कोर्ट में ? सावंत साहब ने ‘मंडल कमीशनः राष्ट्र निर्माण की सबसे बड़ी पहल’ की भूमिका लिखी है।
इंदिरा साहनी फैसला सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट से लापता है।

विश्वनाथ प्रताप सिंह। 1990 में लाल किले की प्राचीर से उन्हें पहली और आखिरी बार 1990 में भाषण देने का मौका मिला। वहीं से उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने की ऐतिहासिक घोषणा की। एक घंटे के भाषण में वह देश के जवानों, सांप्रदायिक उन्माद, किसानों, मजदूरों पर केंद्रित रहे। प्रसार भारती ने अपने आर्काइव में करीब सवा घंटे का वीडियो डाला है, जो अपलोड है।
उसमें वीपी के भाषण से वह अंश गायब है, जिसमें उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने की घोषणा की थी।

ओबीसी गायब किए जा रहे हैं, जातियों में बांटे जा रहे हैं। कुर्मियों में मराठा, रेड्डी, कापू, खंडायत, पटेल, वोक्कालिगा वगैरा ओबीसी आरक्षण नहीं पाते, जिन्होंने पंजाब राव देशमुख के साथ मिलकर ओबीसी आरक्षण की लड़ाई लड़ी थी, वो पहले ही अलग थलग हो चुके हैं और फारवर्ड क्लास में आते हैं, वो पहले ही बंट चुके हैं।

ओबीसी ऐसा तबका है जो खेती किसानी करता है, अब ज्यादातर खेत मजदूर बन चुके हैं। यह इतना बड़ा व ताकतवर तबका है कि अगर एकजुट हो जाए तो देश का इतिहास भूगोल बदल देगा। इसी तबके में से एसएमई चलाने वाले निकलते हैं। पुलिस निकलते हैं। सेना के जवान निकलते हैं। ठेके पर भर्ती, एसएमई को तबाह कर, कृषि उत्पाद का उचित मूल्य देकर इनका वर्तमान छीना जा रहा है। साथ ही इनका इतिहास भी छीना जा रहा है। ये एकजुट न हो जाएं, इसके लिए बड़ी मेहनत चल रही है। ये किसान चीन में एकजुट हुए थे तो माओत्से तुंग के नेतृत्व में देश के शासन पर कब्जा कर लिया, उसके पहले इन किसानों को अफीमची और चीन को अफीमचियों का देश कहा जाता था। इसलिए किसान बहुत बड़ा खतरा होता है किसी देश की सत्ता के लिए।

आज विश्वनाथ प्रताप सिंह की जयंती है। उन्होंने एक कविता में लिखा…
भगवान हर जगह है
इसलिये जब भी जी चाहता है
मैं उन्हे मुट्ठी में कर लेता हूँ
तुम भी कर सकते हो
हमारे तुम्हारे भगवान में
कौन महान है
निर्भर करता है
किसकी मुट्ठी बलवान है।

फोटो- जनता दल के गोरखपुर में एक कार्यक्रम के दौरान गोरखपुर के जाने माने समाजवादी नेता केदारनाथ सिंह सैंथवार (बाएं) विश्वनाथ प्रताप सिंह (बीच में) मुलायम सिंह यादव (दाएं)

(किसी के पास बगैर कॉपीराइट वाला वीपी का भाषण हो तो मुझे मु्हैया कराया जाए)

#भवतु_सब्ब_मंगलम

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