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G-20 Summit: नई दिल्ली में आयोजित दो दिन का जी-20 शिखर सम्मेलन कई मायनों में भारत के लिए सफल रहा। इनमें से एक सबसे अहम बात यह रही है रूस और यूक्रेन की जंग का कोई जिक्र नई दिल्ली घोषणापत्र में नहीं हुआ। भारत ने ऐसा करके और घोषणापत्र पर सर्वसहमति बनाकर मास्टरस्ट्रोक खेला है। इस कदम से भारत का दोस्त भी हैरान है। इंडोनेशिया में पिछले जी20 समिट में रूस और यूक्रेन की जंग को लेकर रूस की आलोचना घोषणापत्र में की गई थी। इस बार भारत की पहल की बदौलत ऐसा नहीं हुआ। इससे हैरान दोस्त रूस खुश है। रूस के राष्ट्रपति ने भारत के इस कदम के बारे में रूस का जो पक्ष रखा, वो भारत की समिट की सफलता को दर्शाता है।
रूस की ओर भारत में आयोजित जी20 समिट को सफल बताया गया है। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने जी20 शिखर सम्मेलन में यूक्रेन युद्ध को जी20 में हावी नहीं होने देने के लिए भारत की सराहना की। मीडिया से बात करते हुए लावरोव ने कहा कि ‘भारत ने जी20 एजेंडे का यूक्रेनीकरण नहीं होने दिया।’ रूस ने नई दिल्ली घोषणापत्र में प्रयोग किए शब्दों के लिए खुशी के साथ ही हैरानी जताते हुए कहा है कि ऐसे घोषणापत्र की तो उन्हें उम्मीद ही नहीं थी। रूसी विदेश मंत्री ने रविवार को जी20 के राजनीतिकरण के प्रयासों को रोकने के लिए भारत के प्रति आभार जताया।
घोषणापत्र पर आम सहमति के बारे में ये बोले रूसी विदेश मंत्री
उन्होंने कहा कि यह शिखर सम्मेलन निश्चित रूप से सफल रहा है। जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन की घोषणा पर आम सहमति पर लावरोव ने कहा, ‘जब वे इस पर सहमत हुए, तो शायद यह उनकी अंतरात्मा की आवाज थी। स्पष्ट रूप से कहें तो हमें इसकी उम्मीद नहीं थी।’ रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि हम यूक्रेन और रूस का उल्लेख करने वाले बयानों को घोषणा के बाकी काम से अलग नहीं कर सकते। इस साल घोषणा की मुख्य लाइन ग्लोबल साउथ के एकीकरण के बारे में है। लावरोव ने कहा, जी20 अपने मुख्य लक्ष्यों के लिए वास्तव में काम कर रहा है।’
रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या बोले लावरोव
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें लगता है कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्धविराम हो सकता है, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि फिलहाल यूक्रेनी अधिकारी रूसियों को शारीरिक रूप से नष्ट करने की धमकी दे रहे हैं। लावरोव ने कहा, “हर कोई शांति चाहता है। करीब 18 महीने पहले, हम इस संघर्ष को सुलझाने के बारे में एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हुए थे। उसके बाद एंग्लो-सैक्सन ने ज़ेलेंस्की को इस पर हस्ताक्षर न करने का आदेश दिया क्योंकि उन्हें लगा कि वे हमसे कुछ स्वीकारोक्ति प्राप्त करने में सक्षम होंगे।’
चीनी प्रधानमंत्री के लिए रही मुश्किलभरा रहा दौरा
चीनी राष्ट्रपति ली कियांग के लिए इस दौरे में सिवाय मूक दर्शक बने रहने के और कुछ हासिल नहीं हो पाया। न तो चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की बात कर पाया। यहां तक कि यूरोपीय और अमेरिकी देशों के साथ चीनी पीएम को बात करने में भी हिचकिचाहट ही रही। वहीं मेलोनी ने रोम में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को छोड़ने की बात भी कही। इसके अलावा भारत ने 21वें सदस्य के रूप में अफ्रीकन यूनियन को शामिल करवाया। गरीब अफ्रीकी देशों को अपने कर्ज का शिकार बनाने वाले चीन के लिए ये गहरा सदमा था।
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