चीन की दीवार से भी लंबी दीवार कभी भारत में मौजूद थी?
यह प्रश्न अटपटा लगता है मगर यह पुस्तक हमें एक ऐसी ही दीवाल से परिचित कराती है, जो पूरे भारत को दो हिस्सों में काटती थी। सिंधु नदी से वर्तमान पाकिस्तान, दिल्ली, झाँसी, होशंगाबाद, चंद्रपुर, रायपुर होते हुए महानदी घाटी यानी उड़ीसा तक। एक ढाई हज़ार मील लंबी दीवाल।
उस समय के कस्टम कमिशनर एलन ऑक्टावियन ह्यूम (जिनका दूसरा परिचय आप जानते होंगे) ने लिखा,
“एक बड़ी जनसंख्या के देश, जहाँ तस्करी आम है, वहाँ एक ऐसी बाधा तैयार थी जो अगर ठीक अवस्था में हो, तो उसे कोई मनुष्य या जानवर नहीं पार कर सकता”
यह आखिर कैसी दीवाल थी, जिसे अधिकांश भारतीय नहीं जानते? यह कहाँ चली गयी? यह बनायी क्यों गयी थी?
इसी कौतूहल में नब्बे के दशक में एक अंग्रेज़ यह दीवाल ढूँढने निकलते हैं, जो दरअसल एक पक्की दीवाल न होकर बबूल, बेर, इमली आदि की घनी बाड़ थी। आठ-नौ फीट से अधिक ऊँची, और छह फीट से अधिक चौड़ी एक ऐसी बाड़ जो हज़ारों मील तक फैली थी। इसे इसलिए लगाया गया था ताकि ‘नमक’ की तस्करी न हो सके!
यह सोच कर ही अजीब लगता है कि कभी भारत की एक बड़ी जनसंख्या खाने में सफ़ेद नमक डालती ही नहीं थी, क्योंकि इस पर कर बहुत ज्यादा था। इसकी भी तस्करी होती थी, और इसे रोकने के लिए अंग्रेज़ों ने कस्टम चौकियों की एक शृंखला और ये लंबे बाड़ लगा डाले।
आखिर क्या वह बाड़ झाँसी, इटावा, जालौन और चंबल घाटी में गुजरते हुए मिल पाती है? क्या इतने वर्षों बाद वे सूख नहीं गए? वहाँ सड़कें और मकान नहीं बन गए? क्या अब भी अंतरिक्ष से तस्वीर ली जाए तो भारत को बाँटती वह रेखा दिख सकती है? क्या गाँव के बुजुर्गों को वह याद है या कहानी सुनी है?
इस सवा दो सौ पृष्ठों की अत्यंत रोचक ढंग से लिखी पुस्तक में कुछ उत्तर मिल जाएँग
[एक बुरी खबर यह कि भारत में इसकी कीमत तीन हज़ार रुपए से अध है!
6By: Praveen J
चीन की दीवार से भी लंबी दीवार कभी भारत में मौजूद थी?
यह प्रश्न अटपटा लगता है मगर यह पुस्तक हमें एक ऐसी ही दीवाल से परिचित कराती है, जो पूरे भारत को दो हिस्सों में काटती थी। सिंधु नदी से वर्तमान पाकिस्तान, दिल्ली, झाँसी, होशंगाबाद, चंद्रपुर, रायपुर होते हुए महानदी घाटी यानी उड़ीसा तक। एक ढाई हज़ार मील लंबी दीवाल।
उस समय के कस्टम कमिशनर एलन ऑक्टावियन ह्यूम (जिनका दूसरा परिचय आप जानते होंगे) ने लिखा,
“एक बड़ी जनसंख्या के देश, जहाँ तस्करी आम है, वहाँ एक ऐसी बाधा तैयार थी जो अगर ठीक अवस्था में हो, तो उसे कोई मनुष्य या जानवर नहीं पार कर सकता”
यह आखिर कैसी दीवाल थी, जिसे अधिकांश भारतीय नहीं जानते? यह कहाँ चली गयी? यह बनायी क्यों गयी थी?
इसी कौतूहल में नब्बे के दशक में एक अंग्रेज़ यह दीवाल ढूँढने निकलते हैं, जो दरअसल एक पक्की दीवाल न होकर बबूल, बेर, इमली आदि की घनी बाड़ थी। आठ-नौ फीट से अधिक ऊँची, और छह फीट से अधिक चौड़ी एक ऐसी बाड़ जो हज़ारों मील तक फैली थी। इसे इसलिए लगाया गया था ताकि ‘नमक’ की तस्करी न हो सके!
यह सोच कर ही अजीब लगता है कि कभी भारत की एक बड़ी जनसंख्या खाने में सफ़ेद नमक डालती ही नहीं थी, क्योंकि इस पर कर बहुत ज्यादा था। इसकी भी तस्करी होती थी, और इसे रोकने के लिए अंग्रेज़ों ने कस्टम चौकियों की एक शृंखला और ये लंबे बाड़ लगा डाले।
आखिर क्या वह बाड़ झाँसी, इटावा, जालौन और चंबल घाटी में गुजरते हुए मिल पाती है? क्या इतने वर्षों बाद वे सूख नहीं गए? वहाँ सड़कें और मकान नहीं बन गए? क्या अब भी अंतरिक्ष से तस्वीर ली जाए तो भारत को बाँटती वह रेखा दिख सकती है